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हिन्दू विधि में पहली पत्नी के रहते दूसरा विवाह अनुमत नहीं,अपराध भी है।

rp_judicial-sep8.jpgसमस्या-

डीके ने मिर्जापुर उत्तर प्रदेश से पूछा है-

मेरी शादीको तीन वर्ष हो गये जिस में मेरी पत्नी मेरे साथ केवल सात माह रही है। मेरी एक बेटी है जो मेरी पत्नी को पसन्द नहीं थी। 4 दिन की थी तब से मेरे पास थी, मुश्किल से मैं ने उसे पाला। बच्चा उस के पास रहे इस के लिए अनेक बार कोशिश की पर उस के माता पिता ने हर कोशिश को असफल कर दिया। मैं ने बाध्य हो कर धारा 9 में दाम्पत्य की पुनर्स्थापना का आवेदन प्रस्तुत किया। तब पुलिस के माध्यम से बेटी को उस ने ले लिया। पत्नी को मिर्गी आती है, वह मेरे परिवार के पूर्ण नहीं कर पा रही है। मुझे क्या करना चाहिए क्या तलाक की अर्जी प्रस्तुत करनी चाहिए या फिर बीमारी को सामने रखते हुए दूसरे विवाह की अनुमति प्राप्त करनी चाहिए?

समाधान-

हिन्दू विवाह अधिनियम में एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह पूरी तरह से वर्जित है। किसी न्यायालय को इस तरह की अनुमति देने का क्षेत्राधिकार ही नहीं है। यदि आप को वैध दूसरा विवाह करना है तो आप को अपनी पहली पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करनी होगी। अन्यथा यह विवाह अपराध भी हो जाएगा।

यदि आप दूसरा विवाह करना चाहते हैं तो आप को विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करनी होगी। इस के लिए आप को तुरन्त आवेदन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर देना चाहिए। मिर्गी आना तलाक का आधार नहीं हो सकता, इस कारण पत्नी द्वारा आप का लम्बे समय से त्याग और क्रूरता पूर्ण व्यवहार उस का आधार हो सकता है। किसी स्थानीय अच्छे वकील से सलाह करें जिस से वह आप से बातचीत कर के अन्य आधारों की तलाश कर के कार्यवाही कर सके।