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अचल संपत्ति के विवाद के दावे साक्ष्य पर निर्भर होते हैं।

समस्या-

प्रेम शंकर गुप्ता ने रायबरेली उत्तर प्रदेश से पूछा है-

आज से लगभग 90 वर्ष पहले मेरे परबाबा ने एक रिहायशी जमीन खरीदी थी। कुछ वर्ष पश्चात मेरे बाबा ने उसी से जुडी कुछ और जमीन खरीदी तथा उस पूरी जमीन पर मकान बनवााया। तब से आज तक मेरे बाबा, मेरे पिता जी तथा अब हम तीन भाई उस पर काबिज हैं। क्या मेरे चचेरे बाबा अथवा उनके वंशज या मेरे चाचा जो कभी भी इस मकान पर काबिज नहींं थे और न ही हैं इस मकान में हिस्सा ले सकते हैं?

समाधान-

आज से 90 वर्ष पूर्व आपके परदादाजी ने कोई आवासीय भूखंड खरीदा। इस भूखंड को खरीदने का दस्तावेज क्या है यह आपने नहीं बताया। कुछ वर्ष पश्चात आपके दादाजी ने उससे जुड़ा एक और भूखंड खरीदा। उस भूखंड को खरीदने का दस्तावेज क्या है? यह भी आपने नहीं बताया। दोनों भूखंडों से जुड़ कर बने संयुक्त भूखंड पर आपके दादाजी ने मकान बनाया। जब यह मकान बनाया तब नगरपालिका से अनुमति ली होगी मानचित्र पास कराया होगा। उसका टैक्स भी दे रहे होंगे। इन सब के क्या सबूत हैं? यह भी हमें आपने नहीं बताया है। उस मकान पर आपके दादाजी, पिताजी और आप तीन भाई काबिज रहे हैं और हैं। आपके मकान के संबंध में स्वामित्व और कब्जे के जो दस्तावेज हैं उनसे क्या प्रमाणित होता है? इस पर इस मकान से सम्बन्धित कोई भी दावा और उसका प्रतिवाद निर्भर करेगा।

आपके परदादा ने वर्तमान भूखंड का आधा खरीदा था। उस भूखंड पर मकान आपके बाबा ने बनाया। जब आपके बाबा ने मकान का निर्माण आरम्भ किया तब आपके परबाबा मौजूद थे? यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है। इस मामले में परदादा द्वारा खरीदा गए भूखंड पर उनके देहान्त के बाद आपके दादा और चचेरे दादा दोनों को उत्तराधिकार प्राप्त हुआ था। लेकिन मकान केवल आपके दादाजी ने बनाया। लेकिन उत्तराधिकार में प्राप्त संयुक्त परिवार की संपत्ति होने के कारण उस पर परिवार का के किसी भी एक व्यक्ति का कब्जा होने पर भी कब्जा संयुक्त माना जाएगा। इस तरह आपके चचेरे बाबा और उनके वंशजों का आपके परदादा द्वारा खरीदे गए भूखंड के आधे हिस्से पर अधिकार है। वे दावा कर सकते हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उनका दावा सफल होगा या नहीं।

दावे की सफलता दावा होने पर न्यायालय में प्रस्तुत साक्ष्य पर निर्भर करेगा। इस तरह के प्रश्नों पर तब तक किसी तरह का विचार करना ही नहीं चाहिए जब तक कि वास्तव में कोई दावा न हो जाए। दावा हो भी जाए तो उसे अदालत के बाहर ही निपटाना चाहिए। यह एक दीवानी वाद होगा और उसमें अनेक कानूनों के अनेक पेच उपस्थित होेंगे। ऐसे मामले कई वर्षों तक अपील दर अपील चलते रहते हैं और उनका अन्त अक्सर आपसी समझौते से होता है। इस बीच जो व्यक्ति कब्जे में होते हैं वे ही उस संपत्ति का लाभ उठाते रहते हैं। दावा करने वाले पक्ष का बहुत समय और धन व्यय होता है और वह बीच में लड़ाई को छोड़ भागता है। इसलिए ऐसे मामलों का अदालत के बाहर समझौते से निपटाना बेहतर होता है।