इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना और अधिनियम में संशोधन : भारत में विधि का इतिहास-82
|सन् 1861 के अधिनियम की धारा 16 के अंतर्गत ब्रिटिश क्राउन ने 17 मार्च 1886 को एक लेटर्स पेटेंट जारी कर उत्तर पश्चिमी प्रांतों के लिए आगरा में एक उच्च न्यायालय स्थापित करने का उपबंध किया गया था। 1875 में यह उच्च न्यायालय इलाहाबाद अंतरित कर दिया गया। इस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना हुई। इस उच्च न्यायालय को भी प्रेसीडेंसी नगरों के उच्च न्यायालयों की भांति ही दीवानी और दांडिक अधिकारिता प्रदान की गई थी। लेकिन उसे उन की तरह नौकाधिकरण विषयक और दीवाला विषयक अधिकारिता प्रदान नहीं की गई। प्रेसीडेंसी नगरों के उच्च न्यायालयों को प्रेसीडेंसी नगरों के लिए आरंभिक अधिकारिता प्रदान की गई थी। जब कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय को कोई आरंभिक दीवानी और दांडिक अधिकारिता नहीं दी थी।
सपरिषद गवर्नर जनरल को उच्च न्यायालयों की अधिकारिता परिवर्तन का अधिकार
उच्च न्यायालय अधिनियम, 1865 के उपबंधों के अधीन सपरिषद गवर्नर जनरल को 1861 के अधिनियम के अंतर्गत स्थापित उच्च न्यायालयों की अधिकारिता में उपयुक्त परिवर्तन करने का अधिकार दिया गया। लेकिन उक्त शक्ति का उपयोग ब्रिटिश क्राउन द्वारा अनुमोदन के पश्चात ही किया जा सकता था।
उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि
भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1911 के द्वारा 1861 के अधिनियम में आवश्यक संशोधन किए गए। इन के द्वारा मुख्य न्यायाधीश सहित उच्च न्यायालयों में 16 के स्थान पर 20 न्यायाधीश नियुक्त किए जा सकते थे। सपरिषद गवर्नर जनरल उच्च न्यायालय में दो वर्ष के लिए अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त कर सकता था। इस अधिनियम में स्पष्ट कर दिया गया था कि न्यायाधीशों को वेतन आदि का संदाय भारतीय राजस्व से ही किया जा सकता था।
भारत शासन अधिनियम 1915
उच्च न्यायालयों के पुनर्गठन और ब्रिटिश भारत में अन्य स्थानों पर उच्च न्यायालय स्थापित करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा भारत शासन अधिनियम-1915 पारित किया गया। इस के द्वारा 1861 और 1911 के अधिनियमों का निरसन कर दिया गया। इस अधिनियम के उपबंधों के अंतर्गत न्यायाधीशों की संख्या की सीमा समाप्त कर दी गई और ब्रिटिश सम्राट को उपयुक्त संख्या में मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीश नियुक्त करने का प्राधिकार प्रदान किया गया। उच्च न्यायालयों को उन्मुक्त समुद्र पर होने वाले अपराधों और नौकाधिकरण विषयक अधिकारिता सहित अपीली दीवानी और दांडिक अधिकारिता दे दी गई। इस अधिनियम के द्वारा उच्च न्यायालयों को अभिलेख न्यायालय का स्तर प्रदान किया गया और उन्हें न्यायालयों के कामकाज को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्राधिकार प्रदान किया गया। उच्च न्यायालयों को राजस्व संकलन संबंधी कार्यों के लिए जो स्थानीय प्रथाओं और रूढ़ियों के अनुसार किए गए हों उन पर भी अधिकारिता प्रदान की गई थी।
इस अधिनियम से उच्च न्यायालयों को अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण का अधिकार प्रदान किया गया। वे अधीनस्थ न्यायालयों को उपयुक्त विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकते थे और किसी भी मामले को उचित समझने पर स्वयं के समक्ष अंतरित कर सकते थे। अब उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यवाही और प्रक्रिया के संबंध में आवश्यक नियम, विनियम व प्रपत्र जारी कर सकते थे, लेक
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6 Comments
बहुत अच्छी जानकारी जी धन्यवाद
इतनी अच्छी जानकारियां देते हैं आप, धन्यवाद तो कहना ही पडेगा।
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कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
बहुत बढिया जानकारी मिली.
रामराम.
आज हिंदी ब्लागिंग का काला दिन है। ज्ञानदत्त पांडे ने आज एक एक पोस्ट लगाई है जिसमे उन्होने राजा भोज और गंगू तेली की तुलना की है यानि लोगों को लडवाओ और नाम कमाओ.
लगता है ज्ञानदत्त पांडे स्वयम चुक गये हैं इस तरह की ओछी और आपसी वैमनस्य बढाने वाली पोस्ट लगाते हैं. इस चार की पोस्ट की क्या तुक है? क्या खुद का जनाधार खोता जानकर यह प्रसिद्ध होने की कोशीश नही है?
सभी जानते हैं कि ज्ञानदत्त पांडे के खुद के पास लिखने को कभी कुछ नही रहा. कभी गंगा जी की फ़ोटो तो कभी कुत्ते के पिल्लों की फ़ोटूये लगा कर ब्लागरी करते रहे. अब जब वो भी खत्म होगये तो इन हरकतों पर उतर आये.
आप स्वयं फ़ैसला करें. आपसे निवेदन है कि ब्लाग जगत मे ऐसी कुत्सित कोशीशो का पुरजोर विरोध करें.
जानदत्त पांडे की यह ओछी हरकत है. मैं इसका विरोध करता हूं आप भी करें.
nice
आभार इस जानकारी का.