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उत्तर प्रदेश में विवाहित पुत्रियों को कृषि भूमि में उत्तराधिकार नहीं।

rp_land-demarcation-150x150.jpgसमस्या-

अनीता तिवारी ने बदरिया, सोरों, कासगंज, उत्तर प्रदेश राज्य की समस्या भेजी है कि-

मेरी माँ को उनके मौसिया ससुर ने 22 बीघा (एग्रीकल्चर लैंड) कृषि भूमि सन् 1988 में वसियत कर दी थी। मेरी माँ की मृत्यु सन 2008 में हो गयी। ये 22 बीघा जमीन के साथ एक मकान है। मेरी माँ के मरने के बाद जमीन व मकान लेखपाल ने मेरे भाई के नाम कर दिए। हम तीन भाई बहन हैं हम तीनों ही शादीशुदा व बाल बच्चेदार हैं। हम दो बहनें एक भाई है। क्या मुझे माँ की पुश्तैनी जमीन व मकान में से हिस्सा मिल सकता है? हम ने कोर्ट में मुकदमा डाला हमारे एडवोकेट ने हम से कहा कि शादी शुदा बेटी के लिए जमीन व मकान में हिस्सा नही मिल सकता। वकील ने कहा कि कौन से कानून के तहत व कौन सी धारा में मुकद्दमा डालूँ? मुझे हर हालत में अपनी माँ की पुश्तैनी एग्रीकल्चर लैंड की जमीन व मकान में हिस्सा चाहिए। एडवोकेट बार बार मना कर रहा है कि यह एग्रीकल्चर लैंड की जमीन में हिस्सा मिलना कानून में ही नहीं है। कृपया कर धारा व कानून बताएँ।

समाधान

ब से पहले तो हम आप को बताना चाहते हैं कि आप की कृषि भूमि और मकान पुश्तैनी संपत्ति नहीं हैं। पुश्तैनी संपत्तियाँ केवल वही हैं जो 17 जून 1956 के पूर्व किसी हिन्दू पुरुष को अपने पुरुष पूर्वज अर्थात् पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो। आप की माताजी को संपत्ति वसीयत से प्राप्त हुई है जो कि पुश्तैनी नहीं है। वैसे भी 1956 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होने के बाद से स्त्रियों की संपत्ति उन की व्यक्तिगत संपत्ति ही मानी जाती है वह पुश्तैनी नहीं होती।

भारत में कृषि भूमि राज्यों के कानूनों से शासित होती है। कृषि भूमि का स्वामित्व राज्य का होता है, तथा कृषक उस पर केवल एक खातेदार होता है अर्थात उस की हैसियत किराएदार जैसी होती है। उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी न हो कर जमींदारी विनाश अधिनियम प्रभावी होता है जिस में विवाहिता पुत्रियों को उत्तराधिकार में सम्मिलित नहीं किया गया है, अविवाहित बेटियों को भी 2008 में सम्मिलित किया गया है। इस तरह आप के वकील सही कहते हैं कि विवाहित पुत्री को कृषि भूमि में उत्तराधिकार प्राप्त नहीं है। इस कृषि भूमि में आप का और आप की बहिन का कोई हिस्सा नहीं है। आप को उन की बात पर विश्वास करना चाहिए। यदि आप को विश्वास न हो तो आप किसी दूसरे वकील से मिल कर बात कर सकते हैं। यदि दो राय हो जाएँ तो जरूर एक गलत होगी, उस की पुष्टि किसी तीसरे से की जा सकती है।

कान यदि कृषिभूमि का हिस्सा है तो वह भी इसी अधिनियम से शासित होगा और उस में भी आप का हिस्सा नहीं है। लेकिन यदि मकान आबादी भूमि पर है तो उस में आप का हिस्सा हो सकता है क्यों कि आबादी भूमि पर स्थित संपत्ति पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होगा। इस मामले में आप स्पष्ट रूप से स्थानीय वकील को बताएँ कि मकान आबादी भूमि पर है उस में आप का हिस्सा हो सकता है। वह आप को स्थानीय कानून के अनुसार राय दे देगा।