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कहीं किराएदार विवश, तो कहीं मकान मालिक मजबूर

ल के आलेख किरायानामा कैसे लिखा जाए ? पर  सुशील बाकलीवाल का कहना था कि “प्रायः किराया प्राप्ति की रसीद मकान-मालिक देते ही नहीं हैं और गरजमन्द किरायेदार को उस स्थिति को स्वीकार करते हुए ही किरायेदार बनना मंजूर करना होता है।” दूसरी ओर राज भाटिय़ा  जी का कहना था कि “अकसर किरायेदार मकान ओर दुकान पर कब्जा कर लेते हे, ओर उन्हे निकलना असमभव सा हो जाता हे, मेरे एक रिश्ते दार ने तो दुकान ही जब्त कर ली” 
ये दोनों ही कथन एक दूसरे के विपरीत हैं। जहाँ पहली प्रतिक्रिया किराएदार की विवशता को व्यक्त करती है वहीं दूसरी मकान मालिक की लाचारगी बता रही है। लेकिन ये दोनों ही कथन वस्तुतः हमारी न्याय व्यवस्था की लाचारगी को अधिक व्यक्त करती हैं। किराएदार यदि मकान मालिक को कहे कि वह बिना रसीद के किराया नहीं देगा, तो मकान मालिक को रसीद देनी ही होगी। अन्यथा वह मकान मालिक को रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से सूचना दे सकता है कि वह किराये की रसीद नहीं दे रहा है इस कारण से वह अपना बैंक खाता बताए जहाँ किराया जमा करा सके। यदि फिर भी मकान मालिक बैंक खाता नहीं बताता है तो किराया न्यायालय में जमा कराया जा सकता है। किसी भी किराएदार को बिना रसीद के किराया भुगतान नहीं करना चाहिए। क्यों कि रसीद के अभाव में किराया बकाया माना जाएगा और इस का अनुचित लाभ मकान मालिक उठा सकता है। वह कम से कम तीन वर्ष का किराया बकाया बता कर उस की वसूली और किराया अदायगी में चूक के कारण मकान  खाली कराने का मुकदमा किराएदार के विरुद्ध कर सकता है। राजस्थान में जो नया किराया कानून लागू हुआ है उस में तो मकान मालिक को किराएदार को अपना बैंक खाता निर्दिष्ट करना आवश्यक कर दिया गया है।
कोई भी किराएदार कभी भी मकान मालिक नहीं बन सकता वह सदैव ही किराएदार बना रहता है। इस कारण किसी मकान या दुकान पर किराएदार द्वारा कब्जा कर लेना संभव नहीं है। लेकिन किसी किरायेदार से मकान या दुकान तभी खाली कराए जा सकते हैं, जब कि किराएदार ने किराया अदायगी में चूक की हो, या किसी अन्य शर्त को भंग किया हो, या मकान मालिक को वास्तव में उस दुकान / मकान की सद्भाविक आवश्यकता हो, या फिर कानून में वर्णित कोई अन्य कारण हो। 
लेकिन फिर भी उक्त दोनों टिप्पणियों में वर्णित अवस्था इसलिए उत्पन्न होती हैं कि चाहे मकान मालिक की ज्यादती कर रहा हो या फिर किराएदार अदालत से राहत प्राप्त करने में वर्षों गुजर जाते हैं। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि पिता ने किराएदार से मकान खाली कराने के लिए मुकदमा किया और लड़ते-लड़ते उस की मृत्यु हो गई। फिर मुकदमा बेटे ने लड़ा लेकिन वह भी अपने जीवनकाल में मकान खाली नहीं करा सका और मकान खाली होते-होते पोता अपनी वृद्धावस्था में पहुँच गया। इस सब का कारण है कि हमारे यहाँ अदालतों की कमी है, और दीवानी कानून में पेचीदगियाँ अधिक। अदालतों के पास मुकदमों की संख्य

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