DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

धारा 182 आईपीसी असंज्ञेय है, मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत परिवाद पर ही कार्यवाही हो सकती है।

समस्या-

डॉक्टर मोहन कुमार वर्मा ने 31,राम घाट मार्ग कहारवाड़ी, उज्जैन म.प्र. से पूछा है-

मैं दिनांक 09.07.2018 को दिवानी प्रकरण मे वसीयती अनुप्रमाणित गवाह दिनेश सोनी के साथ ट्रेन से प्रातः 9.30 बजे शुजालपुर पहुंचा। वहाँ से आटो मे बैठ कर 9.45 बजे वकील साहब के यहाँ गया। वे निजी काम से बाहर गए थे, वहाँ से हम 10.00 बजे न्यायालय चले गए। गवाह की साक्ष्य लिए जाने का इंतजार करते रहे।  दोपहर 3.30 बजे मेरा सगा भाई भगत राम एक पुलिस जवान को लेकर आया और बताया ये मोहन कुमार एवं दिनेश हैं पुलिस हमें थाने ले गयी वहाँ हमें मालूम हुआ कि हमने सुबह 9.40 बजे दुकान में भगत राम से मारपीट की व गवाह दिनेश सोनी ने बाएं हाथ में चाकू मारा व हम दोनों के विरूद्ध भगत राम ने भा.दं. सं.की धारा 452, 294, 323, 506 एवं 34 के अंतर्गत फर्जी एफआईआर कर कायमी करवा दी। जबकि हम दोनों दुकान पर गए ही नहीं। मैं दिनांक 13.07.2018 को थाना प्रभारी को फर्जी एफआईआर के विरुद्ध आई.पी.सी.धारा 182 के तहत कार्रवाई हेतु आवेदन करने के बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने चला गया।

यात्रा से आने के बाद मै ने पुलिस अधीक्षक शाजापुर, डी.आई.जी. को निष्पक्ष जांच करने आवेदन दिया साथ ही हाईकोर्ट मे सी.आर.पी.सी की धारा 482 का आवेदन दिया जो कि लंबित है। सत्य तो यह है कि दिनांक 09.07.2018 को मेरे भाई भगतराम ने रेल से उतरते हुए देख पूर्व नियोजित षडयंत्र के तहत जाँच अधिकारी जो हेड काँस्टेबल रेंक का है,से साँठगाँठ कर हाथ में ईंजूरी कर एम.एल.सी. बनवाकर, दुकान के ही नौकरों को फर्जी गवाह बना कर एफआईआर दर्ज करवादी। अभी म.प्र. में चुनाव के कारण प्रकरण पेंडिंग  है। श्री मान से निवेदन है कि मुझे मार्गदर्शन दे कि मै क्या करूँ? ऐसी स्थिति में स्थानीय न्यायालय में कोई कार्यवाही की जा सकती हो तो सुझाव दिजिएगा।

समाधान-

प के विरुद्ध एक फर्जी मुकदमा बनाने के विरुद्ध आप ने जितना कुछ तुरन्त किया जा सकता था वह सब किया है। इस से पता लगता है कि आप एक जागरूक नागरिक हैं और अपने अधिकारों के प्रति सजग रहते हैं। इस फर्जी एफआईआर को निरस्त कराने के लिए आप ने धारा 482 में उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन कर दिया है यह भी उचित ही है। इस की सुनवाई अब होना चाहिए और निर्णय पारित हो जाना चाहिए, या फिर उच्च न्यायालय से उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट पर आगे की कार्यवाही पर रोक का आदेश पारित करवाना चाहिए।

इस मामले में आप को कुछ तथ्य और सबूत एकत्र कर के रखना चाहिए। आप जिस ट्रेन से शुजालपुर गए थे उस ट्रेन के टिकट संभाल कर रखना चाहिए। ट्रेन के शुजालपुर पहुँच का समय आरटीआई से पूछ कर जवाब अपने पास रखना चाहिए। इसी तरह जिस ऑटोरिक्शा से आप शुजालपुर स्टेशन से वकील साहब के यहाँ और फिर अदालत में पहुँचे थे उस ऑटोरिक्शा के ड्राइवर या ड्राईवरों का अता पता भी आप को रखना चाहिए जिस से उस का बयान लिया जा सके।

धारा 182 दंड प्रक्रिया संहिता असंज्ञेय अपराध है। इस कारण आप की शिकायत पर थाना प्रभारी कार्यवाही करने में सक्षम नहीं है। आप को अपनी रिपोर्ट की प्रतिलिपि पुलिस से ले लेनी चाहिए। असंज्ञेय मामलों में पुलिस वाले रिपोर्ट को रोजनामचा में दर्ज करते है और उस की प्रतिलिपि रिपोर्ट दर्ज कराने वाले को दे देते हैं। इस प्रति को ले कर आप सक्षम मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवाद दाखिल कर सकते हैं। यह परिवाद जितनी शीघ्र आप प्रस्तुत कर सकते हों आप को कर देना चाहिए। इस मामले में आप को आप के वकील की मदद लेनी चाहिए। यह परिवाद कर देने के बाद आप को जिस न्यायालय में आप गवाही के लिए उस दिन उपस्थित हुए थे उस न्यायालय को भी आप को सूचना देनी चाहिए कि आप का भाई गवाहों को प्रभावित करने के लिए इस तरह की कार्यवाही कर रहा है।

Print Friendly, PDF & Email