कानूनी समस्या के समाधान के लिए आवश्यक दस्तावेज का अध्ययन आवश्यक है।
रामप्रसाद पटेल ने होशंगाबाद, मध्य प्रदेश से पूछा है-
मेरे एक मित्र ने एक भूखंड आठ लाख में खरीदने का सौदा एक व्यक्ति से किया था। 100 रुपए के स्टाम्प पेपर पर एग्रीमेंट लिखा जा कर नोटेरी से सत्यापित कराया गया तथा पाँच लाख रुपया दे दिया गया। शेष राशि 30 जुलाई तक दे कर रजिस्ट्री करवानी थी। रुपए की व्यवस्था नहीं हो सकी। इस पर विक्रेता ने किसी अन्य व्यक्ति भूखंड बेच दिया। मेरे मित्र के रुपए वापिस भी नहीं किए। मेरे मित्र को क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप के मित्र ने जो सौदा किया था उस की शर्तें क्या तय हुई थीं? तथा भूखंड का कब्जा ले लिया गया था या नहीं? इस संबंध में कुछ भी विवरण आपने अपनी समस्या में नहीं दिया है। इस समस्या का मूल मित्र तथा विक्रेता के बीच हुआ एग्रीमेंट है जिस का पूरा विवरण होना इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है जिस के अभाव में आप की समस्या का ठीक ठीक समाधान किया जाना संभव नहीं है। तीसरा खंबा को अधिकांश समस्याएँ ऐसी प्राप्त होती हैं जिन में पूरा और आवश्यक विवरण नहीं होता है। जिस का नतीजा यह होता है कि तीसरा खंबा उन पर विचार नहीं कर पाता है। यदि ऐसी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत भी किया जाए तो वह अधूरा, अनुपयुक्त और गलत हो सकता है इस कारण उन का उत्तर न देना ही उचित है। समस्या प्रेषित करने वाले पाठकों से आग्रह है कि वे अपनी समस्या का तथ्यात्मक विवरण पूरा दें।
आप के मामले में जो एग्रीमेंट हुआ था उस में शेष राशि अदा न करने की स्थिति में क्या शर्त तय हुई थी यह स्पष्ट नहीं है। यदि ऐसी कोई शर्त तय हुई हो या न हुई हो तो भी समय पर शेष राशि न चुकाने की स्थिति में उसे भूखंड किसी दूसरे व्यक्ति को विक्रय करने से पहले आप के मित्र को नोटिस देना चाहिए था कि उस ने शेष राशि अदा न कर के संविदा को तोड़ा है इस कारण उसे वह भूखंड दूसरे व्यक्ति को विक्रय करने का अधिकार उत्पन्न हो गया है। यदि संविदा भंग हुई भी हो तो अधिक से अधिक विक्रेता को इस सौदे के टूटने से जो हानि हुई है उतनी राशि अग्रिम राशि में से काट कर शेष राशि आप के मित्र को अदा करनी चाहिए थी।
अब आप के मित्र को चाहिए कि वह एग्रीमेंट को किसी स्थानीय वकील को दिखा कर सलाह प्राप्त करे और इस मामले में जो भी किया जा सकता हो उस के संबंध में उन से राय प्राप्त कर अगली कार्यवाही करे। लेकिन यदि विक्रेता ने उक्त भूखंड के विक्रय पत्र का पंजीयन नए क्रेता के नाम नहीं कराया है तो आप के मित्र को तुरंत दीवानी वाद प्रस्तुत कर उक्त भूखंड के विक्रय पत्र का पंजीयन किए जाने पर रोक लगाने हेतु अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त करनी चाहिए। वाद किस तरह का होगा यह मित्र से हुए विक्रय एग्रीमेंट का अध्ययन करने पर ही तय किया जा सकता है। यदि विक्रेता की नीयत और इरादा भी किसी चीज से स्पष्ट होता हो तो इस मामले में छल की भी संभावना है और यदि वह प्रकट होता है तो उस की शिकायत पुलिस या मजिस्ट्रेट के न्यायालय को प्रस्तुत की जा सकती है।