क्रेताओं के विरुद्ध वाद कारण विक्रय पत्र के पंजीयन की तिथि पर उत्पन्न होगा
|समस्या –
एक वाद अधिमान्य अधिकार Preferential Right हेतु विचाराधीन है जो अविभाजित हिन्दू पैत्रृक संपत्ति का है इसके ४ सहस्वामी है वाद प्रस्तुति के बाद ३ सहस्वामी ने इस सम्पत्ति को आपस में मिलकर ४ क्रेताओं को विक्रय कर दिया। इस वाद में जो ४ क्रेता है उन में से एक क्रेता वाद प्रस्तुति के समय से ही वाद में पक्षकार रहा है और उसने अपने पुत्र भाई एवं भतीजे के नाम से विक्रय पत्र सम्पादित किए हैं। वादी ने यह वाद प्रस्तुत किया कि वादग्रस्त सम्पत्ति में उसका १/४ स्वत्व है और शेष ३/४ स्वत्व क्रय करने का अधिमान्य अधिकार (Preferential Right है। वाद प्रस्तुति के बाद में विक्रय पत्र का पंजीयन हुआ इस कारण से अन्य ३ क्रेताओं को बाद में पक्षकार बनाने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया। हालाँकि एक आवेदन आदेश १ नियम १० दीवानी प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत तत्काल प्रस्तुत कर दिया था और उस का आदेश होने पर आदेश ६ नियम १७ दीवानी प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पक्षकारों के नाम जोड़ने हेतु प्रस्तुत कर दिया था लेकिन इस आवेदन पर आदेश आने में २ वर्ष का समय लगा। मेरे प्रश्न हैं कि इस वाद में Limitation Act का प्रभाव क्या होगा? क्या वाद में एक क्रेता पक्षकार समयावधि में है और अन्य समय बाधित हैं? क्या वाद प्रस्तुति दिनांक और संशोधन दिनांक, दोनों तिथियाँ लिमिटेशन को प्रभावित करती हैं? इस परेशानी का अन्य कोई उपाय क्या है?
-राजेश, इन्दौर, मध्यप्रदेश
समाधान-
एक चार व्यक्तियों के संयुक्त स्वामित्व की संपत्ति को उस के तीन स्वामियों ने विक्रय कर दिया। आप उस के विरुद्ध यह वाद ले कर आए कि उस संपत्ति को वे विक्रय नहीं कर सकते क्यों कि उस संपत्ति में 1/4 हिस्सा आप का भी है। उस के अलावा आप ने यह भी कहा कि वे यदि अपने हिस्से विक्रय करना चाहते हैं तो आप को उन के 3/4 भाग को क्रय करने का अधिकार है। उन तीन हिस्सेदारों ने जब विक्रय का अनुबंध किया तभी आप ने उन के विरुद्ध तथा अनुबंध करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर दिया। इस वाद के लिए वाद कारण या तो उक्त संपत्ति को बेचे जाने की आशंका से उत्पन्न हुआ या फिर उन के बीच हुए लिखित अनुबंध से। आप ने अपने वाद में वाद कारण क्या लिखा है यह तो आप ही बेहतर जानते हैं।
वाद प्रस्तुत करने के उपरान्त उक्त संपत्ति के तीन भागीदारों ने उक्त संपत्ति के विक्रय पत्र का पंजीयन करवा दिया। उस पंजीयन से आप को पता लगा कि उक्त संपत्ति किन व्यक्तियों को विक्रय की गई है। जिस दिन आप को यह पता लगा कि उक्त संपत्ति क्रय करने वाले अन्य लोग कौन हैं, उसी दिन उन व्यक्तियों के विरुद्ध वाद कारण उत्पन्न हो गया। आप द्वारा पहले से प्रस्तुत किए गए वाद में विक्रय पत्र का निष्पादन और पंजीयन पश्चातवर्ती घटनाएँ थीं। दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 17 तथा आदेश 1 नियम 10 के अंतर्गत पश्चातवर्ती घटनाओं के आधार पर आदेश पारित किया जा सकता है। यदि आप ने उक्त दोनों प्रार्थना पत्र विक्रय पत्र के पंजीयन की तिथि से या उस के बाद आप द्वारा उस की जानकारी होने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के भीतर प्रस्तुत किए हैं तो आप के वाद पर अवधि अधिनियम के उपबंधों का कोई प्रभाव नहीं होगा। आप के समक्ष वास्तव में कोई परेशानी नहीं है।