क्रेता सावधान
भूपेन्द्र सिंह ने रुद्रपुर, उत्तराखंड से समस्या भेजी है कि-
जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ एक रियल एस्टेट डेवलपर कंपनी एक कॉप्लेक्स बना कर सेल कर रही है। मैं ने जब वहाँ जा कर उस प्रोजेक्ट के बारे में पता किया तो पता चला कि जिस ज़मीन पर वो बिल्डिंग बना कर सेल की जा रही है वो ज़मीन उनकी मालिकी की नहीं है बल्कि 99 वर्ष की लीज़ पर मिली है। मैं जानना चाहता हूँ कि क्या बिल्डर ऐसा कर सकता है कि जिस ज़मीन का वो मालिक नहीं है उस ज़मीन पर फ्लेट बना कर लोगों को विक्रय कर दे? क्योंकि जो लोग फ्लेट ख़रीदेंगे ऐसा समझ रहे हैं कि उन्हें उस फ्लेट की मालिकी मिल रही है। क्या कोई कानूनी कार्यवाही की जा सकती है बिल्डर के खिलाफ?
समाधान-
कृषि भूमि के संबंध में सिद्धान्त यह है कि सारी जमीन सरकार की है और कृषक उस का केवल किराएदार कृषक है जो लगान के रूप में किराया देता है। जब किसी नगर या गाँव का विस्तार होता है तो इसी कृषि भूमि पर होता है। ऐसी कृषि भूमि की किस्म को बदला जाता है वह कृषि भूमि से नगरीय/आबादी भूमि में परिवर्तित हो जाती है और नगर विकास न्यास, नगर पालिका या ग्राम पंचायत को सौंप दी जाती है। उस भूमि का की स्वामी सरकार होती है ये संस्थाएँ केवल उसे रेगुलेट करती हैं। अब ऐसी भूमि को सरकार कभी भी विक्रय नहीं करती। अपितु उसे 99 वर्ष की लीज पर ही स्थानान्तरित करती है। 99 वर्ष के लिए ही लीज पर ही विक्रय की जाती है। बाद में उस पर यदि कोई ऐसा भवन बन जाता है जिस की आयु 99 वर्ष के बाद भी बनी रहती है तो सरकार उस लीज को आगे नवीकरण कर सकती है।
कोई भी ऐसी भूमि पर जो लीज पर प्राप्त की गई है प्रोजेक्ट बना सकता है और नगरीय निकाय से अनुमति प्राप्त कर के फ्लेट बना कर विक्रय कर सकता है। जब फ्लेट विक्रय होता है तो उस भूमि पर बने फ्लेटों के स्वामियों के पास उस इमारत की पूरी जमीन के उतने अंश का स्वामित्व होता है जितने अंश पर उन का फ्लेट बना होता है।
वैसे भी आजकल जो इमारतें बन रही हैं वे कंक्रीट के उपयोग से बनती हैं जिन की उम्र् 99 वर्ष से कम की होती है। कोई भी बहुमंजिली इमारत 90 वर्ष से अधिक उम्र की नहीं होती। इस अवधि के बहुत पहले ही विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप उस बिल्डिंग को गिराया जा कर उस के स्थान पर नया निर्माण होने लगता है। वैसी स्थिति में उस बिल्डिंग के फ्लेट स्वामियों को उन के फ्लेट की कीमत से बहुत अधिक मुआवजा प्राप्त हो जाता है। आज कल यह सब सब की जानकारी में हो रहा है। प्रोजेक्ट निर्माता बिल्डर किसी तरह की कोई बेईमानी नहीं कर रहा है उस के दस्तावेजों में यह स्पष्ट है कि भूमि लीज की है। आप ने जानकारी करने का प्रयत्न किया तो आप को पता लग गया कि जमीन लीज की है, फ्री होल्ड की नहीं है। फिर ‘क्रेता सावधान’ का सिद्धान्त तो है ही। क्रेता जब भी कोई संपत्ति क्रय करे तब सब कुछ जाँच परख कर करे। ऐसे बिल्डर के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही इस आधार पर किया जाना संभव नहीं है।
Bahut bahut dhanyavaad aapka Dinesh sir ji. Aap apna keemati samay nikaal kar yaha jo margdarshan karte hain uska sirf dhanyawad se keemat nahi chukaaya ja sakta. Aapke lekh ka main niyamit pathak hun aur bhavishya me aapke aur margdarshan ki abhilasha rakhta hun. Bahut bahuth dhanyawad Ravi ji aapka bhi.
भूपेन्द्र जी, आप काफी जागरूक हैं और किसी भी क्रेता को ये सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद ही सम्पत्ति क्रय करनी चाहिए फिर भी आप इस बात की तस्दीक कर लें कि बिल्डर का ये प्रोजेक्ट आपके शहर के विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत है कि नहीं। किसी भी इस तरह के रियल स्टेट कम्पनी का प्रोजेक्ट या डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) प्राधिकरण से स्वीकृत होना चाहिए। आमतौर पर कम्पनियां अपने दायित्यों से बचने के लिए नाम तो कम्पनी का इस्तेमाल करती हैं जबकि काम व्यक्तिगत रूप से किसी के नाम पर किया जाता है ताकि खर्चे व निजी दायित्यों से भी बचा जा सके। इसलिए वो प्राधिकरण से अनुमति के बगैर अपना काम कराती हैं जिसकी कीमत बाद में क्रेता को चुकानी पड़ती है।
– रवि श्रीवास्तव, इलाहाबाद।
Ravi ji* kripaya mujhe ye bataye ki main RTI ke dwara kaun kaun se paper ki maang karun jisase builder dwara project me ki ja rahi dhokhadhadi jaise legal construvtion hai ya nahi pata chal sake mujhe.
भूपेन्द्र जी आप उस शहर के विकास प्राधिकरण से जहाँ ये योजना चल रही है, निम्न जानकारियाँ जन सूचना अधिकार, 2005 की धारा 6 के तहत प्राप्त कर सकते हैं-
1. कम्पनी द्वारा चलायी जा रही योजना का डीपीआर विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत है कि नहीं।
2. जमीन लीज पर है या फ्री होल्ड या फिर नेचर आॅफ लैण्ड क्या है।
3. प्राधिकरण इस कम्पनी के प्रोजेक्ट के स्वीकृत मानकों का विस्तृत विवरण उपलब्ध कराए।
अगर आप चाहें तो कम्पनी के निदेशकों व कम्पनी से जुड़ी अन्य जानकारियाँ जन सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत कम्पनी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार से प्राप्त कर सकते हैं।
उपरोक्त सारी सूचनाएँ मिल जाने के बाद आपको स्वतः पता चल जाएगा कि कम्पनी काम सही कर रही है अथवा गलत। ये सारी सूचनाएँ व कम्पनी के ब्रोशर ……आदि आप सहेज कर रखे रहें ताकि वक्त जरूरत पर काम आ सके और कभी भी कोर्ट कचहरी में आप अपना पक्ष मजबूती के साथ इन दस्तावेजों की बदौलत रख सकेंगे।
-रवि श्रीवास्तव, इलाहाबाद।
Thank you very much Raviji for your valuable input. Are you also an advocate?
जी हाँ!
Yadi saari jameen sarkaar ki hai aur krishak kevel kiraayedasr hai to aajkal krishak jo jameen sell karte hain woh kaise sambhav hai??
भूपेन्द्र सिंह जी आप को बहुत कुछ जानने की जरूरत है उस के लिए यह मंच छोटा पड़ेगा। कृषक सिर्फ अपने खातेदारी (किराएदारी) अधिकार विक्रय करता है। कृषि भूमि में लेण्डलोर्ड सरकार है और कृषक सिर्फ टीनेंट।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.क्रेता सावधान
बिलकुल विक्रेता को विक्रय पत्र में टाइटल कहाँ से आरंभ हुआ है यह अंकित करना आवश्यक है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो यह गलत है और धोखाधड़ी है, धारा ४२० आईपीसी में दंडनीय अपराध है।
Kya builder dwara is baat ka ullekh karna aawashyak hai sale agreement ki jameen 99 varso ki leas par hai? Agar aisa nahi hota hai to kya karwaai ki jaa sakti hai?
बिलकुल विक्रेता को विक्रय पत्र में टाइटल कहाँ से आरंभ हुआ है यह अंकित करना आवश्यक है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो यह गलत है और धोखाधड़ी है, धारा ४२० आईपीसी में दंडनीय अपराध है।