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चाचा को उक्त प्लाट एवं उस पर बने मकान पर कोई अधिकार नहीं।

समस्या-

त्रिभुवन पटेल ने नया गांधी नगर कोंच, तहसील कोंच, जिला जालौन, उत्तर प्रदेश से पूछा है-

मेरे दादा जी ने 2004 में अपने नाम पर प्लॉट की रजिस्ट्री कराई थी। मेरे पिताजी दो भाई हैं।  2012 में 100 रुपये के स्टाम्प पर दादाजी एवं चाचा ने लिखित रूप से दस्तखत करते हुए उस प्लाट पर मेरे पिताजी को मालिकाना हक देते हुए नोटरी करवाकर मुझे दे दी थी। उक्त पारिवारिक बंटवारे में अन्य 4 गवाह भी उपस्थित थे, जिनके स्टाम्प पर दस्तखत भी है। मैं अपनी मेहनत की कमाई से अपना मकान बनाकर 2016 से रह रहा रहा हूं। जिसका बिजली बिल मेरी माताजी के नाम से भी आता है जिसे मैं लगातार भरता हूँ। जनवरी 2020 में दादा जी की मृत्यु उपरांत चाचा जी अब मकान के दो हिस्से की बात करते हुए अपना दावा पेश करते हैं और मानसिक दवाब बनाने की कोशिश करते है। कृपया उचित सलाह प्रदान करें।

समाधान-

आपके दादाजी ने 2004 में जो प्लाट खरीदा था वह उन की निजी कमाई से खरीदा था और उन की स्वअर्जित निजी संपत्ति था। आप के दादाजी ने उस प्लाट को आपके पिताजी को दे दिया, इस प्लाट को आप के पिताजी को देने के लिए आप के दादाजी को आप के चाचाजी से किसी तरह की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी उन्हों ने आप के चाचाजी की सहमति प्राप्त की थी। यह इस कारण हो सकता है कि वे परिवार में किसी तरह का विवाद नहीं चाहते थे। इस तरह से यह दस्तावेज एक तरह से दान-पत्र की श्रेणी का हो सकता है। लेकिन दानपत्र का पंजीयन आवश्यक है। जिसके अभाव में उक्त दस्तावेज न्यायालय में साक्ष्य में ग्रहण करने योग्य नहीं हो सकता है। लेकिन दादाजी की मृत्यु के उपरान्त उसे एक वसीयत की तरह भी देखा जा सकता है।

दूसरी ओर उक्त प्लाट वर्ष 2004 से आपके पिताजी के कब्जे में है, आप की माताजी के नाम से उसका बिजली कनेक्शन है और आपने निजी धन लगा कर उस पर निर्माण किया है और 2016 से उसमें निवास कर रहे हैं। इस तरह आपके पास उक्त भूखण्ड का आप के पास एडवर्स पजेशन भी है। आपके चाचा को उक्त प्लाट पर किसी तरह का कोई दावा करने का अधिकार नहीं है। आपको आगे से कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।

यदि आप के चाचा किसी तरह का दावा करें तो आप अपने बचाव में उक्त दस्तावेज का सहारा उसे एक वसीयत के रूप में प्रस्तुत कर के ले सकते हैं। लेकिन आपको यह सावधानी रखनी होगी कि उसे किसी भी प्रकार से दान-पत्र न माना जाए। क्यों कि तब उसे साक्ष्य में ग्रहण करने से न्यायालय द्वारा इन्कार किया जा सकता है।