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दत्तक ग्रहण से क्या जाति परिवर्तित हो जाएगी और आरक्षण के लाभ छिन जाएंगे?

Adoption
समस्या-

दौसा (राजस्थान) से राजेश कुमार ने पूछा है-

मेरे मौसी अन्य पिछड़ी जाति की हैं मेरी मौसी कोई संतान नहीं होने के कारण मुझे गोद लेना चाहती हैं। उनका दतक पुत्र बनने में मुझे और मेरी माँ को कोई आपति नहीं है, मेरे पिता जी का भी देहांत हो चुका है| जिस अनुसूचित जाति वर्ग से मैं सरकारी कर्मचारी हूँ।  क्या अन्य जाति वर्ग के गोद जाने से सरकारी विभाग में भी वो जाति वर्ग भी बदल जायेगा? यदि हाँ तो कौन से नियम के तहत ऐसा संभव होगा? केंद्रीय सरकार और राजस्थान सरकार के क्या अलग अलग नियम हैं? यदि जाति बदल जाती है तो इसमें सरकार को कोई आपत्ति तो नहीं होगी और क्या सर्विस बुक में भी मेरी जाति बदल जायेगी|

समाधान-

प का प्रश्न अत्यन्त जटिल है। इस में विधि के अनेक पहलू और सिद्धान्त छिपे हैं। सब से पहला प्रश्न तो यह है कि क्या आप को दत्तक ग्रहण किया जा सकता है? हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम के अनुसार केवल 15 वर्ष तक की आयु के बालकों को ही दत्तक ग्रहण किया जा सकता है वह भी उस के माता-पिता की सहमति और दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की सहमति से। 15 वर्ष से अधिक के व्यक्ति और विवाहित व्यक्ति को भी दत्तक ग्रहण किया जा सकता है लेकिन तभी जब कि उस परिवार या जाति में ऐसी परंपरा हो। इस परंपरा को साबित करना दुष्कर है। इस के अलावा जब कोई स्त्री किसी पुरुष को दत्तक ग्रहण करती है तो यह भी आवश्यक है कि दत्तक ग्रहण किए जाने वाले पुरुष से दत्तक ग्रहण करने वाली स्त्री की उम्र कम से कम 21 वर्ष अधिक हो। आप को दत्तक ग्रहण के पूर्व इन सब बातों को जाँचना होगा।

दि यह मान लिया जाए कि आप का दत्तक ग्रहण हो जाता है तो समस्या यह होगी कि आप की जाति दत्तक ग्रहण के उपरान्त क्या होगी। भारत का संविधान जाति के आधार पर भेद करने की मनाही करता है इस कारण से संविधान की दृष्टि में जाति का कोई महत्व नहीं है। लेकिन दूसरी ओर संविधान हिन्दू विधि से शासित होने वाले लोगों को पाँच भिन्न जाति आधारित श्रेणियों में विभाजित करता है। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, अन्य पिछड़ी जाति और सवर्ण जातियाँ। इन में से पहली चार श्रेणियों को शिक्षा, नौकरी, निर्वाचन आदि मामलों में आरक्षण प्राप्त है। इस कारण इन लाभों को प्राप्त करने के दृष्टिकोण से जाति परिवर्तन के प्रश्न पर विचार करना आवश्यक है।

हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 12 के अनुसार दत्तक ग्रहण होते ही एक व्यक्ति प्रत्येक मामले में अपने दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की संतान समझा जाता है। इस हिसाब से उस की जाति भी बदल जानी चाहिए। लेकिन इस धारा में जो संदर्भ हैं वे केवल विवाह की वर्जित श्रेणियों तथा संपत्ति से संबंधित हैं। जब कि जाति का मामला सामुदायिक है। किसी व्यक्ति की जाति तभी परिवर्तित हो सकती है जब कि जाति का संपूर्ण समुदाय उसे अपनी जाति में सम्मिलित कर ले। यह काम केवल जाति की पंचायत कर सकती है।

स के अलावा एक बिन्दु भी है कि अब तक भारतीय न्यायालयों का दृष्टिकोण इस मामले में क्या रहा है। एक बालक यदि छोटी उम्र में द्त्तक ग्रहण कर लिया जाता है और उस का पालन पोषण दत्तक ग्रहण करने वाले माता पिता के यहाँ होता है तो यह माना जा सकता है कि उस ने उन असुविधाओं को भी झेला है जो कि दत्तक ग्रहण करने वाले माता पिता की जाति झेलती है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति बड़ी उम्र् में दत्तक ग्रहण किया जाए तो इस बात को मानना संभव नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने In Murlidhar Dayandeo Kesekar v. Vishwanath Pandu and R. Chandevarappa v. State of Karnataka , के मामले में 22 फरवरी 1995 को पारित निर्णय में निम्न सिद्धान्त प्रतिपादित किया है –

Therefore, when a member is transplanted into the Dalits, Tribes and OBCs, he/she must of necessity also undergo have had same the handicaps, and must have been subject to the same disabilities, disadvantages, indignities or sufferings so as to entitle the candidate to avail the facility of reservation. A candidate who had the advantageous start in life being born in forward caste and had march of advantageous life but is transplanted in backward caste by adoption or marriage or conversion, does not become eligible to the benefit of reservation either under Article 15(4) and 16(4), as the case may be. Acquisition of the Status of Scheduled Caste etc. by voluntary mobility into these categories would play fraud on the Constitution, and would frustrate the benign constitutional policy under Articles 15(4) and 16(4) of the Constitution.

स निर्णय और अन्य सभी निर्णयों में विवाद इस बात पर हुआ है कि क्या दत्तक ग्रहण से जाति परिवर्तन के बाद कोई व्यक्ति परिवर्तित जाति को प्राप्त आरक्षण के लाभ प्राप्त कर सकता है? और उत्तर नहीं में दिया गया है। लेकिन आप का मामला उलटा है आप अनुसूचित जाति वर्ग से हैं जिन्हें आरक्षण की अधिक सुविधाएँ प्राप्त हैं तथा आप अन्य पिछड़ी जाति में  दत्तक ग्रहण होना चाहते हैं। आप को भय है कि दत्तक ग्रहण से आप को प्राप्त आरक्षण की सुविधाएँ छिन न जाएँ।

र्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित उक्त सिद्धान्त के अनुसार तो आप की सुविधाएँ छीनी नहीं जानी चाहिए। पर यदि कोई शिकायत करे तो वे सुविधाएँ विवाद में अवश्य आ जाएंगी फिर मामला जब न्यायालय में जाएगा तो क्या निर्णय होगा यह अभी से नहीं कहा जा सकता।

मेरी राय यह है कि आप की मौसी केवल सामाजिक रूप से इस कारण से दत्तक ग्रहण करना चाहती हैं कि धार्मिक रूप से उनका क्रिया कर्म करने वाला और उन का श्राद्ध करने वाला उन का पुत्र हो और जो कुछ संपत्ति है वह उसे मिल जाए। तो इस मामले में यह किया जा सकता है कि वे सामाजिक-धार्मिक रूप से आप को दत्तक ग्रहण कर लें जिस से उन की इच्छा पूरी हो जाए और संपत्ति जो भी उन के पास है उसे वे आप को वसीयत कर दें जो आप को उन के जीवन काल में आप की हो जाएगी। लेकिन दत्तक ग्रहण करने का दस्तावेज पंजीकृत न कराया जाए। जब तक दस्तावेज पंजीकृत न होगा तब तक आप को सरकारी रूप से दत्तक नहीं माना जाएगा और आप की मौसी और आप का उद्देश्य भी पूरा हो लेगा। वैसे भी इस दस्तावेज को पंजीकृत कराने में अनेक बाधाएँ हैं जिस से उस का पंजीकरण असंभव प्रतीत होता है।

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