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प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वामित्व की घोषणा का वाद पोषणीय है।

समस्या-

मेरे दादाजी ने 40 वर्ष पहले एक जमीन स्टाम्प पर खरीदी। उसके बाद मेरे पिताजी व ताऊजी ने, जो कि दो ही भाई हैं, 1994 में स्टाम्प पर गवाहों के सामने बंटवारा किया जिस में से उस जमीन का एक टुकड़ा हमारे हिस्से में आया। अब उस जमीन के बेचानकर्ता एवं उसके कोई उत्तराधिकारी जीवित नहीं है ऐसे  में उस जमीन  की रजिस्ट्री का क्या उपाय है? क्या उन दोनों स्टाम्प के आधार पर रजिस्ट्री की कार्यवाही हो सकती है? 

– विक्की, नागौर (राजस्थान)

समाधान-

आप के दादाजी ने जमीन खरीदी लेकिन विक्रय पत्र का पंजीयन नहीं हुआ। कोई भी विक्रय पत्र तब तक वैध नहीं होता जब तक कि वह पंजीकृत नहीं हो। लेकिन  संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 53क. कहती है कि यदि संपत्ति अन्तरण के किसी एग्रीमेंट की पार्ट परफोरमेंस हो जाए तो दिया हुआ कब्जा वापस नहीं लिया जा सकता। इस तरह 40 वर्ष पूर्व का स्टाम्प अभी भी काम का है। उसी तरह बंटवारानामा भी स्टाम्प पर है लेकिन पंजीकृत नहीं है। ये दोनों दस्तावेज पंजीकृत नहीं होने के कारण साक्ष्य में उपयोग लिए जाने योग्य नहीं हैं।

उक्त दोनों दस्तावेज यह साबित करते हैं कि 1994 से उस भूमि पर आप का आधिपत्य 26 वर्षों से है। इनके विरुद्ध कुछ भी साबित किया जाना संभव नहीं है। आप का भूमि पर प्रतिकूल कब्जा  (एडवर्स पजेशन) है ही।

अब सुप्रीमकोर्ट ने रविन्द्र कौर ग्रेवाल बनाम  मनजीत  कौर  के मामले में दिनांक  07.08.2019 को निर्णय   दिया है कि यदि किसी संपत्ति पर किसी व्यक्ति का प्रतिकूल कब्जा  हो  तो वह उसे स्वयं को स्वामी घोषित करने हेतु वाद संस्थित कर सकता है। आप भी अपने हिस्से की भूमि का स्वयं को स्वामी घोषित करने के लिए दीवानी वाद संस्थित कर सकते हैं। वाद का निर्णय होने के उपरान्त निर्णय और डिक्री के आधार पर रिकार्ड में अपने नाम नामांतरण करवा सकते हैं।

 

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