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भूमि विभाजन का वाद एक ही न्यायालय में संस्थित होगा

समस्या-

मेरे दादा ने अपने जीवित रहते अपनी समस्त भूमि अपने पुत्रों में बांट दी थी, और एक सादा कागज पर 2 गवाहों सहित अपने हस्ताक्षर करके सभी 5 भाइयों को दे दिया था। तभी से सभी अपने-अपने हिस्से की जमीन पर काबिज हैं। उनकी मृत्यु के बाद सभी जमीनों पर सभी पांच भाइयों के नाम खतौनी पर आ गए हैं। अब 25 साल बाद पिता जी के अन्य भाई पहले हुए बंटवारे को नहीं मान रहे, इसलिए पिताजी ने सरकारी बंटवारे का मुकदमा किया है। जमीन कुल 4 अलग अलग जगह है जिसमें 3 टुकड़े एक ग्राम पंचायत में और दूसरा टुकड़ा  अलग ग्राम पंचायत में है। किंतु सभी भूमि एक ही तहसील व विकास खण्ड में आती है। वाद पत्र में सभी भूमि पर एक-साथ मुकदमा किया गया है। पर विपक्ष के वकील ने आपत्ति लेते हुए अलग-अलग ग्राम पंचायत का अलग अलग मुकदमा करने को कह रहे हैं। क्या दो ग्राम पंचायत होने के कारण अलग मुकदमा दायर करना होगा? हम चाहते हैं कि बंटवारे में मेरे पिता जी के हिस्से की समस्त भूमि एक जगह और वही भूमि दे दी जाय जो दादा जी ने दी थी। क्यों कि यदि सभी टुकड़ो में सभी भाइयों का हिस्सा अलग किया जाएगा तो कृषि करना व उसपर हल चलाना असम्भव हो जाएगा, और हर टुकड़े में एक भाई के हिस्से 4 से 5 बिस्वा जमीन ही आएगी।

              -शिवम शुक्ला, ग्राम व पोस्ट बेंती, विकास खण्ड व तहसील- सरोजिनी नगर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

समाधान-

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता- 2006 में विभाजन से संबंधित धारा 116 इस तरह है-

विभाजन

  1. 116. जोत के विभाजन के लिये वाद-

(1) भूमिधर ऐसी जोत के जिसका वह सह-अंशधारी है, विभाजन कावाद प्रस्तुत कर सकता है।

(2) ऐसे प्रत्येक वाद में न्यायालय ऐसी जोत के विद्यमान वृक्षों, कुँओं और अन्य सुधार का विभाजन कर सकता है लेकिन जहां पर ऐसा विभाजन संभव नहीं है, वहां पर उपरोक्त वृक्षों, कुँओं और अन्य सुधारों एवं उनके मूल्यांकन का विहित रीति से विभाजन और समायोजन किया जायेगा।

(3) जहाँ ग्राम पंचायत से भिन्न वाद के सभी पक्षकार प्रत्येक जोत में संयुक्त रूप से हित रखते हों, वहाँ एक से अधिक जोतों के विभाजन के लिए एक ही वाद संस्थित किया जा सकता है।

(4) इस धारा के अधीन प्रत्येक वाद के लिए सम्बन्धित ग्राम पंचायत को पक्षकार बनाया जायेगा।

इस तरह आपके मामले में धारा 116 उपधारा (3) के अनुसार भिन्न ग्राम पंचायतों में स्थित भूमि के विभाजन के लिए एक ही वाद संस्थित होगा। अलग अलग वाद के लिए जो आपत्ति की गयी है वह गलत है और निरस्त उचित प्रक्रम पर निरस्त कर दी जाएगी।

इस वाद में पहले विभाजन की प्राथमिक डिक्री पारित की जाएगी। उसके बाद सभी पक्षकारों और राजस्व विभाग की सुविधा के अनुसार विभाजन किया जाएगा। जिस में जहाँ तक संभव होगा प्रत्येक व्यक्ति की भूमि एक ही स्थान पर होगी और जोतें कम से कम होंगी।

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