राजस्थान की मीणा जनजाति पर परंपरागत हिन्दू विधि प्रभावी होगी और उसी के अनुसार नामान्तरण होगा।
समस्या-
दौसा, राजस्थान से पवनसिंह गुर्जर ने पूछा है-
मैं वर्तमान में पटवारी पद पर कार्यरत हूँ। मेरे सामने पिछले दिनों नामांतरण को लेकर परेशानियाँ आ रही हैं जिसके बारे में मैं आपसे सलाह लेना चाहता हूँ। मामला इस प्रकार है कि …… जयराम मीणा ने पहले राधा के साथ हिन्दू रीति रिवाजों से शादी की। राधा से जयराम को एक पुत्र कैलाश का जन्म हुआ। कैलाश के जन्म के कुछ दिन बाद ही राधा की मृत्यु हो गयी। जयराम ने फिर नाता प्रथा से मीरा से विवाह कर लिया। मीरा से उसे एक और पुत्र बाबू का जन्म हुआ। अब गत वर्ष जयराम की भी मृत्यु हो गयी। मुझ से पहले के पटवारी ने नामांतरण में कैलाश का हिस्सा 1/2, बाबू का हिस्सा 1/4 और मीरा का हिस्सा 1/4 भर दिया जिसे पंचायत ने स्वीकृत भी कर दिया। बाबू ने सबका हिस्सा 1/3, 1/3 करवाने के लिए उपखण्ड अधिकारी के न्यायालय में दावा कर दिया। अब न्यायालय ने पंचायत को निर्णय पर पुनर्विचार कर निर्णय देने का आदेश दिया है। आप मुझे ये बताने की कृपा करें कि जयराम की सम्पत्ति में मीरा, बाबू, और कैलाश का कितना कितना हिस्सा बनता है? और मीरा की मृत्यु के बाद उसका हिस्सा किसे मिलेगा?
समाधान-
आप का यह मामला अत्यन्त जटिलता लिए हुए है। उक्त मामला मीणा जाति से सम्बन्धित है जो राजस्थान में अनुसूचित जनजाति है और इन के मामलों में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी नहीं है। इस जाति के मामलों में परंपरागत हिन्दू विधि प्रभावी होगी। परंपरागत हिन्दू विधि में सब से पहले तो यह देखना पड़ेगा कि क्या उक्त भूमि जयराम ने स्वयं खरीदी थी अथवा उसे भी उत्तराधिकार में अपने पिता या दादा से प्राप्त हुई है। यदि उसे यह भूमि उत्तराधिकार में अपने पिता या दादा से प्राप्त हुई है तो भूमि का नामान्तरण पुश्तैनी संपत्ति की भाँति होगा और यदि उस की स्वअर्जित संपत्ति है या वसीयत में प्राप्त हुई है या फिर किसी स्त्री से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो उस का नामान्तरण उत्तराधिकार की विधि से होगा। इस कारण से आप पहले यह तय करें कि उक्त भूमि पुश्तैनी है अथवा जयराम की स्वअर्जित संपत्ति है। इस के लिए आप तीनों से सबूत प्रस्तुत करने के लिए कह सकते हैं।
मीरा नाते वाली पत्नी है, लेकिन मीणा जाति से होने के कारण उसे पत्नी ही माना जाएगा।
भूमि पुश्तैनी होने पर जयराम के जीवन काल में ही उक्त भूमि में दोनों पुत्रों का भी उस में बराबर का हिस्सा था, यदि जयराम के जीवनकाल में ही बाबू और कैलाश के भी पुत्र जन्म ले चुके थे तो उन का भी बराबर का हिस्सा था। इस प्रकार यदि कोई बाबू और कैलाश के कोई पुत्र न हो तो उक्त भूमि में जयराम, कैलाश और बाबू तीनों के 1/3-1/3 हिस्सा था। जयराम की मृत्यु होने पर केवल 1/3 हिस्सा ही उत्तराधिकार के लिए उपलब्ध होगा। इस तरह बाबू और कैलाश को पिता के 1/3 हिस्से का आधा आधा 1/6 -1/6 हिस्सा ही उत्तराधिकार में प्राप्त हो कर दोनों का हिस्सा कुल भूमि में आधा-आधा हो जाएगा। मीरा को उक्त संपूर्ण भूमि पर केवल उस के जीवनकाल तक निर्वाह का अधिकार रहेगा। यदि जीवनकाल तक निर्वाह के आधार पर कुल भूमि में से जयराम के 1/3 हिस्से का 1/3 हिस्सा पृथक किया जाता है और दोनों पुत्रों को भी 1/3-1/3 हिस्सा दिया जाता है तो मीरा को 1/9 हिस्सा प्राप्त होगा और दोनों पुत्रों को 1/9-1/9 हिस्सा और प्राप्त हो कर उन का हिस्सा 1/3+1/9 कुल 4/9 हिस्सा हो जाएगा। लेकिन मीरा को केवल जीवन काल के लिए निर्वाह का अधिकार होने से मीरा की मृत्यु पर उसे प्राप्त हुआ 1/9 दोनों पुत्रों के पास आधा आधा अर्थात 1/18-1/18 वापस लौटेगा और इस तरह तब दोनों का हिस्सा ½-½ हो जाएगा। लेकिन पुश्तैनी संपत्ति होने के कारण जयराम के जीवन काल में ही यदि बाबू और कैलाश के पुत्र का जन्म हो चुका होगा तो कुल भूमि में उन का भी एक एक हिस्सा होगा और जयराम का हिस्सा कम हो जाएगा। तब जयराम का जो भी हिस्सा होगा वह समाप्त हो कर सब पुरुषों के हिस्से उसी अनुपात में बढ़ जाएंगे और मीरा को केवल जीवनकाल में निर्वाह हेतु हिस्सा प्राप्त होगा।
लेकिन भूमि के खाते के अनुसार केवल जयराम का नाम दर्ज होने के आधार पर भूमि को उस की स्वअर्जित संपत्ति माना जाता है तो दोनों पुत्रों को आधा आधा हिस्सा अर्थात 1/2-1/2 हिस्सा प्राप्त होगा। स्त्री को निर्वाह का अधिकार होने के आधार पर नामान्तरण में यह अधिकार दर्ज करने या उस के आधार पर उस का हिस्सा अलग करने का रिवाज नहीं है। लेकिन राजस्थान राजस्व मण्डल के एक अप्रकाशित निर्णय में यह कहा गया है कि उस का भी हिस्सा दर्ज होना चाहिए। यदि इस आधार पर जीवनकाल में निर्वाह के अधिकार को नामान्तरण में दर्ज किया जाता है तो मीरा सहित तीनों को 1/3-1/3 हिस्सा प्राप्त होगा। लेकिन मीरा की मृत्यु के उपरान्त मीरा के 1/3 हिस्से का आधा आधा अर्थात 1/6-1/6 हिस्सा वापस दोनों पुत्रों के पास लौटेगा जिस से दोनों का हिस्सा आधा आधा हो जाएगा। मेरी राय में आप को दोनों पुत्रों के नाम 1/2 -1/2 हिस्सा दर्ज करना चाहिए। इस मामले में आप अपने उच्चाधिकारियों से भी सलाह ले सकते हैं कि मीरा को उक्त भूमि में केवल जीवन काल में निर्वाह के अधिकार को दर्ज किया जाए या फिर उस का हिस्सा अलग किया जाए जो कि मीरा की मृत्यु पर दोनों भाइयों के पास आधा आधा लौट आए।
श्रीमान जी,
आपसे निवेदन है की हिन्दू उतराधिकारी संशोधन अधिनियम 2005 से पहले अगर पिता की मृत्यु हो गयी है तो उनकी सम्पति में पुत्री की हिस्सेदारी होगी या नहीं इस से सम्बधित किसी भी न्यायलय के द्वारा दिये गए फैसले की रिपोर्ट के जरीये उदाहरण देकर विस्तृत रूप से समझाने की मृपा करे |
सुखद, पटवारी तक को इस स्तम्भ की सलाह ही विश्वसनीय लगी/ साधुवाद व् बधाई / राजेंद्र सिंह/ अजमेर / राजस्थान