संपत्ति के बँटवारे का वाद संस्थित करना चाहिए, वसीयत का निर्णय उसी में होगा।
सुनील जैन ने रायपुर छत्तीसगढ़ से महाराष्ट्र राज्य की समस्या भेजी है कि-
हमारे पिताजी की संपत्ति 1000 वर्गफुट पर तीन मंज़िल बिल्डिंग है। हम दो भाई और दो बहनें हैं, वह दोनों ससुराल में रहती हैं। मैं 22 साल से रायपुर रहता हूँ, हमारा परिवार भुसावल जिला जलगांव में रहता है। पिताजी का निधन 05/02/2004 में हो गया और माताजी का 07/10/2006 में। बड़े भाई ने झूठी वसीयत बनाकर 2005 में उक्त मकान का मालिक बन गया और बात दोनों बहनों को और मुझे पता नहीं चली । माताजी को उक्त संपत्ति का मालिकाना हक़ भी छीन लिया। 2013 में भुसावल नगर पालिका में गया और उक्त संपत्ति का 10 साल का रिकॉर्ड निकाला तो पता चला कि उक्त संपत्ति मालिक मेरा बड़ा भाई है। वसीयत में जो गवाह का नाम था मैं उनसे मिला और पूछा कि ये वसीयत हमारे पिताजी ने आपके सामने लिखी थी और ये हस्ताक्षर पिताजी ने आपके समक्ष किये थे। उस पर उन्होने जबाब दिया कि तुम्हारा भाई मई महीने के 2005 में हमारे पास आया और बोला कि आप मुझे पहचानते हो ऐसा हस्ताक्षर कर दो, हमने वो दस्तावेज बिना देखे तेरे भाई पर विश्वास रख कर हस्ताक्षर कर दिया और आज पता चल रहा है कि उसका इस्तेमाल वसीयत के गवाह के रूप में किया। उन दोनों गवाहों ने कोर्ट में अफेडेबिट पर शपथ पर कहा है कि मरे हुए व्यक्ति ने हमारे सामने कोई भी वसीयत नहीं बनाया और न हीं हमने कोई वसीयत पर गवाह के रूप में हस्ताक्षर किये हैं। उक्त वसीयत को फोरेंसिक लैब भेजा गया 156 (3) तहत और अभी फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट जज साहब ने बड़े भाई के वकील के निवेदन पर खोली है जिस में ये अभिप्राय दिया कि, जो वसीयत पर हस्ताक्षर है और बाकी जो उसके बैंक में किए गए हस्ताक्षघरों के नमूने से मिलता है। अब हमें बताने का कष्ट करे हमें ये रिपोर्ट वो शासकीय अधिकारी को भी बुलाकर उनसे पूछ सकते है ये हस्ताक्षर का मिलान कैसे हो रहा है। क्या कोर्ट शासकीय राय को कितना सही मानेगी जब गवाहों के जबाब को मद्देनज़र रखकर। मैं अपने पिताजी का हस्ताक्षर जानता हूँ। मेरे बड़े भाई ने अपने को बचाने के लिए ऑलराउंडर वकील लगाया जो सब सेटिंग करने में माहिर है।
समाधान-
आप न्यायालय से निवेदन कर सकते हैं कि आप अन्य हस्ताक्षर विशेषज्ञ से हस्ताक्षरों की जाँच करवाना चाहते हैं और उस का बयान कराना चाहते हैं। ऐसा आप करवा सकते हैं। लेकिन यह मुकदमा किस बात का है यह आप ने नहीं बताया है। 156(3) के उल्लेख से प्रतीत हो रहा है कि यह मुकदमा अपराधिक मुकदमा है। जिस का अधिक से अधिक परिणाम यह होगा कि आप के भाई को फर्जी दस्तावेज बनाने के कारण सजा हो जाएगी। यदि उस वसीयत पर आप के पिता के हस्ताक्षर साबित भी हो जाएँ तब भी गवाहों के हस्ताक्षर बाद में करवा कर आप के भाई ने फर्जी दस्तावेज बनाया है, उसे तो इस आधार पर भी सजा हो सकती है।
यदि आप के भाई ने एक तेज तर्रार सेटिंग वाला वकील किया है तो यह उस का अधिकार है। उस से कोई फर्क नहीं पड़ता। आप को एक अच्छा और विश्वसनीय वकील अपने लिए नियुक्त करना चाहिए।
मामला मकान का है जिसे फर्जी वसीयत से भाई ने अपने नाम कर लिया है। उस का मसला इस अपराधिक मुकदमे से हल नहीं होगा। उस के लिए आप को यह मानते हुए कि वह मकान पिताजी का है और उस में चारों भाई बहनों का अधिकार है, बँटवारे के लिए दीवानी वाद संस्थित करना चाहिए। बँटवारे के वाद में आप का भाई वसीयत के आधार पर प्रतिवाद प्रस्तुत करेगा। वसीयत को केवल गवाहों के आधार पर प्रमाणित कराया जा सकता है। उस वसीयत पर हस्ताक्षर करने वाले गवाह न्यायालय के समक्ष पहले ही गवाही दे चुके हैं कि उन के हस्ताक्षर आप के पिताजी की मृत्यु के बाद कराए गए हैं। यदि दीवानी न्यायालय में वे यह बयान देते हैं तो वसीयत फर्जी साबित हो जाएगी और बँटवारे में आप को मकान का हिस्सा प्राप्त हो सकता है। आप को संपत्ति के बँटवारे के लिए वाद यदि अब तक नहीं किया है तो तुरन्त कर देना चाहिए, उस में देरी करना ठीक नहीं है।
क्या उत्तर प्रदेश में मकान का वसीयत अपंजीकृत वैघ हैा
धन्यवाद महोदय ,
मैं इस बात को बताने त्रुटि हो गयी कि , मैंने स्पेशल सिविल सूट जिला कोर्ट की बैच भुसावल के कोर्ट में दायर की है । ३९ (१,२) के तहेत जो भी संपत्ति है जैसे , भाभी के नाम २०००स्क़ फिट का एक भूमि है , भैया ने एक काम्प्लेक्स में दुकान खरीदी हुई है जो किराये पर दी है , पैतृक दुकान और जब से वाद दायर किया उस दिन से मुनाफे का हिस्सा , मिट्टीतेल का लायसेंस वो भी किराये पर दिया है , और सोना चांदी इन सब पर स्टे मुझे मिला है । स्टे पर भाई ने अपील की है जिसका फाइनल डिसीजन 29 दिसबर को होना है । मुझे ऐसी प्रतीत हो रहा है कि निचले कोर्ट में अभी २३अक्टूबर को ओपिनियन रिपोट जज साहब खोली है जिसमें हस्ताक्षर मिलने की बात कही है उसकी नक़ल की कॉपी उनके वकील अपील की फाइनल डिसीजन में लगा देगें तो मुझको मिला स्टे समाप्त हो जायेगा । दीवानी केस में उन दोनों गवाहों के बयान की सत्यप्रति लगाई है और पिताजी H उ फ की ओरिजल इनकम टैक्स फ़ाइल भी हमने सबमिट की है । क्रिमिनल केस में एक मसला था जो पिछली बार लिखना भूल गया था , भुसावल नगर पालिका के मालकी की एक दूकान पट्टे पर मिली थी भाई ने फर्जी 100₹ का स्टम्प पेपर तारीख ३१/०५/२०११ में खरीदकर उसमें लिखकर लेनेवाले में अपना नाम लिखा और लिखकर देने वाले में मेरा और दोनों बहनो का नाम लिखा और बताया ये तीनो लोग उक्त दुकान मेरे नाम कर देने की सहमति हेतु यह स्टम्प पर हस्तक्षर कर दे रहे है। मेरा और दोनों बहनो का फर्जी हस्तक्षर कर उक्त स्टम्प को एक आवेदन के साथ जोड़कर नगर पालिका के सीईओ को देकर नगर पालिका ने उक्त दूकान को २०११ में भाई के नाम कर दी ।ये मसला क्रिमिनल केस में उक्त फर्जी वसीयत के केस के साथ सलग्न किया है ।
उक्त स्टेप पेपर पर जो हस्ताक्षर और मेरे हस्ताक्षर का मिलान कर , ओपिनियन अधिकारी ने उक्त हस्ताक्षर को मिलने की शत- प्रतिशत राय नहीं दे पाये ।भाई ने ओपिनियन देने वाले साथ सेटिंग कर ये रिपोर्ट पेश करवाया ।