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माता-पिता के जीवित रहते उन की संपत्ति पर संतानों को कोई अधिकार नहीं।

DCF 1.0समस्या-
सचिन शर्मा ने दिल्ली  से पूछा है-

मेरी एक मित्र लड़की की एक समस्या है, जिस में आप की मदद चाहिए। उस के पास इंटरनेट न होने के कारण मैं आपको लिख रहा हूँ।  उस का भाई लगातार माता-पिता पर सम्पत्ति अपने नाम करने का दबाव बनाता है। अभी तक माता -पिता की सारी सम्पत्ति उन्हीं के नाम पर है। घर में बस माता-पिता और वो दो बहन -भाई , कुल चार सदस्य हैं।  वह जानना चाहती है कि माता पिता की सम्पति पर एक अविवाहित लड़की का क्या हक़ है? शादी से पहले औऱ बाद में क्या फर्क पड़ता है? क्या सम्पत्ति उसके भाई के नाम हो जाने से कोई फर्क पड़ेगा? कृपया उचित सलाह दे जिससे वो अपना हक़ आसानी से ले पाये।

समाधान-

ब से पहले तो यह जान लें कि संपत्ति दो प्रकार की होती है। स्थावर संपत्ति तथा चल संपत्ति। मकान जमीन आदि स्थावर संपत्तियाँ हैं, जब कि रुपया, जेवर, गाड़ी, बैक बैलेंस आदि चल संपत्तियाँ हैं। चल संबत्तियाँ जिस के कब्जे में हैं उसी के स्वामित्व की हैं। जब कि घर जमीन आदि जिस के नाम पंजीकृत हैं उस के स्वामित्व की हैं। पिता की संपत्ति पिता की है और माता की संपत्ति माता की है।

ब तक माता पिता जीवित हैं, उन की संपत्ति पर किसी का कोई अधिकार नहीं है। पुत्र को वयस्क अर्थात 18 वर्ष का होने तक तथा पुत्री का उस के विवाहित होने तक मात्र भरण पोषण का अधिकार है।

माता या पिता के देहान्त के उपरान्त यदि वे परिवार के या परिवार के बाहर के किसी सदस्य के नाम  वसीयत कर देते हैं तो जो संपत्ति जिस के नाम वसीयत की गई है उस के स्वामित्व की हो जाती है।

यदि माता पिता किसी को भी वसीयत नहीं करते हैं अपनी चल संपत्ति अपने नाम ही छोड़ देते हैं तो उस संपत्ति पर उस के सभी उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है। उदाहरणार्थ माता के देहान्त पर उन के नाम की संपत्ति पर पति, पुत्र व पुत्री का समान अधिकार होने से प्रत्येक का संपत्ति के तीसरे हिस्से पर अधिकार होगा। यदि पिता की मृत्यु हो जाती है तो उन की संपत्ति पर माता, पुत्र व पुत्री का समान अधिकार होगा इस तरह तीनो एक तिहाई संपत्ति के अधिकारी होंगे।

प के मामले में माता पिता पर पुत्र यह दबाव डाल रहा है कि संपत्ति उस के नाम कर दी जाए। इस का अर्थ यही है कि वह संपत्ति की वसीयत अपने नाम करवाना चाहता है। जिस का असर यह होगा कि उन के देहान्त के उपरान्त संपत्ति पुत्र की हो जाएगी। शेष दोनों उत्तराधिकारियों को कुछ नहीं मिलेगा। वसीयत इस तरह भी की जा सकती है कि माता-पिता में से किसी एक के देहान्त के उपरान्त संपत्ति दोनों में से जो भी जीवित रहेगा उस की रहेगी तथा उस की भी मृत्यु हो जाने के उपरान्त पुत्र या पुत्री की होगी या फिर दोनों को क्या क्या संपत्ति प्राप्त होगी।

स तरह वास्तव में माता-पिता की संपत्ति पर उन की संतानों को माता-पिता के जीवित रहते कोई अधिकार नहीं होता। पुत्री को विवाह तक भरण पोषण का अधिकार होता है। विवाह के बाद वह भी समाप्त हो जाता है। लेकिन माता पिता कोई निर्वसीयती संपत्ति छोड़ जाएँ तो पुत्री का उत्तराधिकार का अधिकार विवाह के बाद भी जीवन पर्यन्त बना रहता है।

जकल पुश्तैनी संपत्तियाँ नाम मात्र की रह गई हैं। यदि कोई पुश्तैनी संपत्ति हो तो 2005 से उस में पुत्री को पुत्र के समान ही प्रदान किया गया है। उस अधिकार को कैसे भी नहीं समाप्त किया जा सकता। क्यों कि वह जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाता है।

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