कृषि भूमि से संबंधित कानूनी मामलों में स्थानीय वकीलों से परामर्श करें।
रवि शर्मा ने हाथरस, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
हमारी कुछ जमीन रेलवे ने अधिग्रहीत की है और हमें मुआवजा भी मिला है। रेलवे अब कुछ एक मुश्त राशि का भुगतान कर रहा है जो केवल उन को मिलेगी जिन का नाम जमीन में है, अधिग्रहण नोटिस से पहले कुछ लोगों ने अपनी संतान का नाम जमीन में जोड़ द्या था। इस कारण से वे कानूनी रूप से मालिक हो गए। यह एक मुश्त राशि उन के पिता और संतान दोनों को मिल रही है। क्या मैं जिस जमीन में मेरा नाम नहीं है उस मामले में कोर्ट में जा सकता हूँ क्यों कि ये पुश्तैनी जमीन है जिस में संतान का भी हक होता है, मैं और पिता अल रह रहे हैं।
समाधान-
मुआवजा देने वाला कभी इस झगड़े में नहीं पड़ता कि जमीन पुश्तैनी है या नहीं। वे तो जिस के नाम जमीन है उसे ही मालिक मान कर मुआवजा देंगे। वैसे भी उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि के मामले में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम या हिन्दू परंपरागत विधि प्रभावी नहीं है। खेती की जमीन की स्वामी तो सरकार है। कृषक की हैसियत किराएदार जैसी होती है। इस अधिनियम में जो भूमि का कृषक है उस का नाम राजस्व विभाग के खाते में दर्ज है। उसी को मुआवजा मिलेगा। कृषि भूमि के मामले में उत्तर प्रदेश में पुश्तैनी या सहदायिक स्वामित्व की क्या स्थिति है इस मामले में आप के यहाँ के स्थानीय वकील स्पष्ट कानूनी स्थिति बता सकते हैं।
यदि उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि के मामले में पुश्तैनी या सहदायिक स्वामित्व को मान्यता हो तो आप अपने पिता, राज्य के राजस्व विभाग और मुआवजा वितरण करने वाले विभाग को पक्षकार बनाते हुए न्यायालय में यह दावा कर सकते हैं कि जो भी मुआवजा मिले उस का एक हिस्सा आप को भी दिया जाए। क्यों कि अधिग्रहीत जमीन पुश्तैनी होने के कारण उस में आप का भी हिस्सा है। आप यह दावा कर के स्थगन प्राप्त कर लेंगे तो जब तक यह प्रश्न तय न हो जाएगा कि मुआवजे में आप का हक है या नहीं, तब तक मुआवजा मिलने से रुका रहेगा। जब भी अन्तिम निर्णय होगा तब मिलेगा और इतने समय का ब्याज नहीं मिलेगा। लेकिन इस मामले में स्थानीय वकील से स्पष्ट राय कर के ही आगे बढ़ें।