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छल पूर्वक बेची-खरीदी गयी जमीन का विक्रय पत्र निरस्त हो सकता है।

rp_kisan-land3.jpgसमस्या-

बबलू अहिरवार ने इन्दौर, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मामला जिला गुना म.प्र. कीा है। हम 3 भाई, 1 बहिन, और विधवा माँ हैं। पिताजी की मृत्यु बाद उनकी पुश्तैनी 30 बीघा ज़मीन के 5 हिस्सों में से (मेरा, मझले भाई, बाहिन, और मां) 4 हिस्सा ज़मीन को एप्रिल-1992 मई बेंच दिया। उस समय मैं नाबालिग था। बड़ा भाई जो कि मानसिक रोगी था और अपनी पत्नी के ग़लत चालचलन, दुष्कर्मों के कारण शक कर के पागल हुआ था। एप्रिल-1991 मई में उस ने अपनी पत्नी को घायल कर दिया था। 2 बच्चों को मार दिया था और अपने आप को घायल कर लिया था। एप्रिल 1991 से ही सेंट्रल जैल ग्वालियर में सज़ा पर था और पागल होने के कारण उसका इलाज मानसिक रोगी चिकित्सालय ग्वालियर में चल रहा था। जून-2011 को जब पता चला की उसकी सज़ा पूरी हो गई है तो उसकी पत्नी, मेरी मां और मैं बड़े भाई को लेने के लिए मानसिक रोगी चिकित्सालय ग्वालियर गये, परंतु उसकी हालत जैसी की तैसी थी। ना तो हम को पहचान रहा था ना ही बात कर रहा था, ना ही कुछ खा रहा था, उसकी ऐसी हालत देखकर मैंने मानसिक रोगी चिकित्साल्या ग्वालियर के अधीक्षक से उसका और इलाज़ करने की बात कही। परन्तु अधीक्षक ने मेरी बात नहीं सुनी और मानसिक रोग चिकित्सालय ग्वालियर के अधीक्षक ने 1 माह की गोली दवाएं के साथ जबरदस्ती बड़े भाई को उसकी पत्नी को सोंप दिया। इंदौर आने के बाद लगभग 1 महीना जब तक दवाएं चली तब तक ठीक रहा। फिर से उसकी मानसिक हालत बिगड़ गई और फिर से उसने वही हरकतें करना शुरू कर दिया जो कि 1991 में की थी। उस ने पत्नी को जलाने की कोशिस की। पत्नी ने उसे घर से बाहर भगा दया और सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया। उसका घर हमारे घर से 8 किलोमीटर दूर था। जब मझले भाई को पता चला कि बड़ा भाई सड़क पर 2 दिन से भूखा प्यासा पड़ा हुआ है तो वह उसे ऑटो में बिठा कर अपने पास ले आया। मैं इन्दौर से बाहर महाराष्ट्र में सर्विस करता हूँ। जब मुझे पता चला तो मैं इन्दौर आया और बड़े भाई का मानसिक रोगों के डाक्टर से इलाज चालू कराया। इस बीच उसकी पत्नी से इन्दौर कोर्ट में स्टांप पेपर के द्वारा बड़े भाई को इलाज के लिए हमें सौंप दिया। अगस्त 2011 से दिसम्बर 2011 तक लगातार उसका इलाज करवाया। जिस से उसके मानसिक स्थिति ठीक हो गई, बात करने लगा। उसकी मानसिक हालत नॉर्मल हो गई और दिनांक 12.01.2012 को घर से भाग गया। जिसकी गुमशुद्गी की रिपोर्ट हमने पुलिस थाने में लिखवाई, उसे ढूंढने की मैंने हर संभव कोशिश की परन्तु कहीं नहीं मिला और आज तक लापता है। 4 हिस्सा ज़मीन 1992 में बिकने के बाद, बड़े भाई की 1 हिस्सा की ज़मीन को भी वही लोग बटाई से जोतते रहे जिन्होने 4 हिस्सा ज़मीन खरीदी थी और बटाई का 1/2 हिस्सा मां और बड़े भाई की पत्नी को गुना से इंदौर 20 साल एअर तक भेजते रहे। 12.01.2012 को बड़े भाई के लापता हो जाने के बाद जिन लोगो ने 4 हिस्सा ज़मीन खरीदी थी और बड़े भाई की ज़मीन बटाई से जोतते रहे थे। उन्हों ने बड़े भाई की पत्नी और लड़की को केवल 70 हज़ार का लालच देकर बड़े भाई की मृत्यु का फर्जी सर्टिफिकेट ग्रामपंचायत ज़िला गुना से 16.05.2013 को बनवा लिया बड़े भाई के नाम की ज़मीन उसकी पत्नी और एक लड़की जिसकी शादी हो चुकी है के नाम पर आ गई। 13.09.2013 को इन्दौर जिला पंजीयक के ऑफीस से बड़े भाई की पत्नी और लड़की ने 2 लोगों को पावर (बहसियत मुख़्तरेआम) दे दिये जो बड़े भाई के हिस्से की ज़मीन को बटाई से जोतते रहे थे। इन दोनो लोगों ने जिनको बड़े भाई की पत्नी और लड़की ने मुख़्तार आम बनाया था में से एक ने 3.5 बीघा ज़मीन को 195000 रु. में अपने लड़के के नाम पर रजिस्ट्री ज़िला पंजीयक गुना में 16.09.2013 को करवा दी और दूसरे ने 2.5 बीघा ज़मीन को 207000 रु. में रजिस्ट्री उप पंजीयक गुना से अपने लड़के की पत्नी के नाम पर 16.09.2013 को करवा दी। मेरा सवाल है कि कितने साल बाद लापता व्यक्ति को मृत माना जा सकता है? तथा किस के सर्टिफिकेट के आधार पर। क्या ग्रमपंचायत से बना हुए मृत्यु सर्टिफिकेट के आधार पर ग्राम पटवारी और ज़िला पंजीयक, बड़े भाई की ज़मीन को उसकी पत्नी और लड़की के नाम पर कर सकता है? क्या बड़े भाई की ज़मीन का एक हिस्सा उत्तराधिकार क़ानून के अन्तर्गत उसकी विधवा मां को मिलना चाहिए था? क्या बड़े भाई की पत्नी को, परिवार के बाहर के व्यक्तियों पावर देने का अधिकार है? क्या बड़े भाई की पत्नी और ज़मीन खरीदने वालों पर फर्जी सर्टिफिकेट बांटने के आधार पर मर्डर का केस लगाया जा सकता है? इस के अंतर्गत कौन सी धारायें लगाई जा सकती हैं? क्या फर्जी बनवाए गये कागज़ातों के आधार पर किया गया नामन्तरण और रजिस्ट्री केंन्सल होकर बड़े भाई के नाम पर ज़मीन वापिस आ सकती है? मेरा बड़ा भाई अभी जीवित है और लगभग 50 वर्ष का होगा।

समाधान

प का भाई 12.01.2012 को लापता हुआ है। इस तिथि से सात वर्ष तक अर्थात 11.01.2019 तक उसे कानूनी रूप से मृत माना जाना संभव नहीं है। ग्राम पंचायत ने उस का मृत्यु प्रमाण पत्र फर्जी शपथ पत्रों और दस्तावेजों के आधार पर बनाया होगा। यह एक फर्जी कार्यवाही है। आप को उस ग्रामपंचायत पर अधिकारिता रखने वाले पुलिस थाने में फर्जी प्रमाण पत्र बनाने के मामले में रिपोर्ट दर्ज करवानी चाहिए। यदि पुलिस इस पर कार्यवाही न करे तो आप को सीधे मजिस्ट्रेट के न्यायालय में अपना परिवाद दर्ज कराना चाहिए। यह एक गंभीरतम अपराध है। केवल कोई न्यायालय ही किसी लापता व्यक्ति को मृत घोषित कर सकता है।

ग्राम पंचायत द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र को अवैध व अकृत घोषित कराने के लिए आप को उस ग्राम पंचायत पर अधिकारिता रखने वाले दीवानी न्यायालय में घोषणा का दावा प्रस्तुत करना चाहिए। इस के साथ ही उक्त दोनों विक्रय पत्र जो आप की भाभी और उस की पुत्री ने निष्पादित कर रजिस्ट्री कराई है उसे निरस्त करने के लिए अलग से दीवानी वाद प्रस्तुत करना चाहिए।

ह सही है कि आप की विधवा माँ को भी भाई की भूमि का एक हिस्सा उत्तराधिकार में प्राप्त होना चाहिए। फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र के आधार पर खोला गया नामांतरण इस कारण भी गलत है आप को इस नामांतरण को निरस्त करने के लिए भी अपील प्रस्तुत करनी चाहिए।

कोई भी व्यक्ति किसी को भी पावर ऑफ अटार्नी दे सकता है, यह जरूरी नहीं है कि अटार्नी (मुख्तार) परिवार का ही सदस्य हो।

ड़े भाई की पत्नी और जमीन खरीदने वालों पर मर्डर केस नहीं लगाया जा सकता। क्यों कि हत्या का मामला दर्ज होने के लिए पहले यह सुनिश्चित होना चाहिए कि किसी की मृत्यु किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कारित की गयी है। इन लोगों ने फर्जी दस्तावेज बनवाए हैं और रजिस्ट्री करवा कर संपत्ति का हस्तान्तरण कराया है। उस के लिए अलग धाराएँ हैं जिन का आप उपयोग कर सकते हैं। इस मामले में 420, 464, 465, 466, 467, 468 तथा 120 बी आईपीसी की धाराओं का उपयोग किया जा सकता है।

मृत्यु प्रमाण पत्र व उस के आधार पर किए गए नामान्तरण तथा विक्रय पत्रों की रजिस्ट्री व उन के आधार पर किए गए नामान्तरण निरस्त किए जा सकते हैं और जमीन वापस आप के भाई के नाम आ सकता है।