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मद्रास और मुंबई के सुप्रीमकोर्ट : भारत में विधि का इतिहास-40

 
मद्रास का सुप्रीम कोर्ट
ब्रिटिश संसद ने 1800 ई. में अधिनियम पारित कर मद्रास में सुप्रीमकोर्ट ऑफ जुडिकेचर स्थापित करने का अधिकार दे दिया और 26 दिसंबर 1800 को जारी चार्टर में इस का उपबंध कर दिया गया। 4 दिसंबर 1801 को मद्रास में सु्प्रीमकोर्ट की स्थापना हो गई। अब पूर्व में स्थापित अभिलेख न्यायालय की समस्त शक्तियाँ सुप्रीमकोर्ट को प्राप्त हो गई थीं। अब मद्रास में भी कोलकाता के समान अधिकारिता से संपन्न सुप्रीमकोर्ट स्थापित हो गया था। 
1823 ईस्वी में ब्रिटिश संसद के एक अन्य अधिनियम से मुम्बई में भी इसी तरह का सुप्रीमकोर्ट स्थापित करने का अधिकार ब्रिटिश सम्राट को दिया। जिस के अंतर्गत 8 दिसंबर 1823 को जारी किए गए चार्टर में मुम्बई में सुप्रीमकोर्ट स्थापित करने का उपबंध किया गया और  4 मई 1874 से मुंबई में सुप्रीमकोर्ट ने अपना काम आरंभ कर दिया। 
 
मुम्बई का सुप्रीमकोर्ट
द्रास और मुंबई में स्थापित इन सुप्रीमकोर्टों की अधिकारिता दीवानी, अपराधिक, नौकाधिकरण और धार्मिक मामलों पर थी। इन न्यायालयों की अधिकारिता में निवास करने वाले विदेशी और स्थानीय दोनों तरह के लोगों के मामलों पर थी। कुछ दीवानी मामलों में स्थानीय व्यक्तियों, कंपनी और ब्रिटिश सम्राट द्वारा नियुक्त कुछ व्यक्तियों पर इन न्यायालयों की अधिकारिता कुछ निर्दिष्ठ प्रतिबंधों के अंतर्गत ही की जा सकती थी। इन न्यायालयों की अपराधिक मामलों की अधिकारिता में अपनी अपनी प्रेसिडेंसियों में निवास करने वाले अंग्रेज नागरिक सम्मिलित थे। स्थानीय नागरिकों पर यह अधिकारिता तभी प्रभावी हो सकती थी जब कि उन्हों ने किसी लिखित संविदा के अंतर्गत इस अधिकारिता को स्वीकार कर लिया हो। कोलकाता का सुप्रीमकोर्ट भू-राजस्व  की वसूली के अतिरिक्त भू-राजस्व से संबंधित सभी मामले सुन सकता था। लेकिन मद्रास और मुंबई सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार नहीं था। 
 
सुप्रीम कोर्टों में प्रवर्तित विधि
द्रास और मुंबई के सुप्रीम कोर्टों में जिस विधि का प्रवर्तन किया जा सकता था उन में, 1826 तक इंग्लेंड में प्रचलित सामान्य विधि, स्टेट्यूट विधि और धार्मिक व नौकाधिकरण संबंधी विधियाँ सम्मिलित थीं। इन के साथ ही सन् 1833 के पूर्व सपरिषद गवर्नर जनरल और सपरिषद गवर्नर द्वारा बनाए गए और सु्प्रीमकोर्ट में पंजीकृत कराए गए विनियम और 1833 के चार्टर द्वारा दी गई शक्ति के अंतर्गत सपरिषद गवर्नर जनरल द्वारा पारित अधिनियम भी उस में सम्मिलित थे। इन के अतिरिक्त जिन मामलों में प्रतिवादी हिन्दू हों  और वादी अन्य धर्मावलंबी, उन में हिन्दू विधि और जिन में प्रतिवादी मुसलमान हो और वादी अन्य धर्मावलंबी उन में मुस्लिम विधि का उपयोग उत्तराधिकार, दाय, माल और संविदा के मामलों में किया जाता था।
 
मुंबई सुप्रीमकोर्ट का सपरिषद गवर्नर से विवाद
मुंबई में सु्प्रीमकोर्ट स्थापित होने के तुंरत बाद ही उस के और सपरिषद गवर्नर के मध्य विवाद खड़े हो गए थे। यह संघर्ष तब अत्यंत उग्र हो गया जब 1826 में सपरिषद गवर्नर ने समाचार पत्रों के प्रकाशन के लिए लायसेंस प्राप्त करने का कानून बनाया। परंपरा के अनुसार कानून को सुप्रीमकोर्ट को पंजीकरण के लिए प्रेषित किया तो सुप्रीमकोर्ट ने उसे पंजीकृत करने से इन्कार क

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