पु्त्री का विवाह हो जाने पर भी संपत्ति में उस का अधिकार बना रहता है।
अश्विनी ने रसूलाबाद, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
क्या अविवाहित पुत्री के विवाह/शादी करने के उपरान्त उसका सम्पत्ति से अधिकार बेदखल हो सकता है?
समाधान-
अश्विनी जी, यूँ तो आप का प्रश्न किसी समस्या को ले कर नहीं है, इस कारण हमें इस का उत्तर नहीं देना चाहिए था। लेकिन यहाँ दे रहा हूँ इस लिए कि लोग जान सकें कि आज भी स्त्रियों की स्थिति वास्तव में क्या है? उन्हें संपत्ति का कोई अधिकार है भी या नहीं।
वास्तविकता यह है कि परंपरागत हिन्दू विधि में जो संपत्ति सहदायिक (पुश्तैनी) होती थी उस में पुरुष संतानों को जन्म से ही अधिकार प्राप्त हो जाता था। वह अब भी जारी है। बस हुआ यह है कि दिनांक 09.09.2005 से एक संशोधन के माध्यम से यह अधिकार सहदायिकी की बेटियों को भी प्राप्त हो गया है।
लेकिन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम अस्तित्व में आने की तिथि तक जो संपत्तियाँ सहदायिक थीं वही सहदायिक रह गयी हैं। सहदायिकी का गठन इच्छा या संविदा के माध्यम से नहीं किया जा सकता। उस का गठन सदैव ही कानून के माध्यम से स्वतः होता था लेकिन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से सहदायिक संपत्ति का अस्तित्व में आना असंभव हो गया है। पुरानी सहदायिकियाँ समाप्त हो रही हैं। एक समय ऐसा आएगा कि सहदायिकियाँ पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी और पुत्रों और पुत्रियों को पुश्तैनी संपत्ति में जन्म से मिला यह अधिकार समाप्त हो जाएगा।
आप का प्रश्न यदि सहदायिकी के संदर्भ में है तो पुत्री का विवाह होने के बाद भी उस का सहदायिक संपत्ति में अधिकार समाप्त नहीं किया जा सकता। केवल और केवल वह स्वयं अपनी इच्छा से उस संपत्ति में अपने हिस्से को किसी को हस्तांतरित कर दे तो यह अधिकार समाप्त हो सकता है।
सहदायिक संपत्तियों के अतिरिक्त अन्य संपत्तियों पर किसी न किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूहों का अधिकार होता है। यदि ये व्यक्ति अपनी वसीयत कर सकते हैं, या उस संपत्ति को किसी को भी हस्तान्तरित कर सकते हैं। इस में जब तक वे जीवित रहते हें किसी अन्य का (पुत्रों-पुत्रियों व पत्नी) का अधिकार उत्पन्न नहीं होता। यदि व्यक्ति वसीयत कर दे तो उस के प्रभाव से यह अधिकार वसीयती को प्राप्त होता है। किसी व्यक्ति की निर्वसीयती मृत्यु हो जाने पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार माँ, पुत्र, पुत्री व पत्नी समान रूप से उस के हिस्सेदार हो जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति की वसीयत नहीं करता है तो इसे ऐसे माना जाना चाहिए कि वह यह चाहता था कि उस के उत्तराधिकारियों को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उस की संपत्ति प्राप्त होनी चाहिए। वैसी स्थिति में आप का यह प्रश्न बेकार हो जाता है कि विवाह होने पर पुत्री का अधिकार समाप्त कैसे हो?
आप उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं वहाँ कृषि भूमि में कृषक का जो अधिकार है वह उत्तराधिकार की विधि के अनुसार न हो कर वहाँ के भूमि कानून जमींदारी विनाश अधिनियम के अनुसार होता है। वह कानून अभी तक बहुत पिछड़ा हुआ है। उस में केवल अविवाहित पुत्रियों को पिता व माता की संपत्ति में अधिकार है। लेकिन अविवाहित रहते हुए एक बार पुत्री को यह अधिकार प्राप्त हो जाए तो उस का विवाह हो जाने से यह समाप्त नहीं होता। विवाह के उपरान्त भी बना रहता है वह बेदखल नहीं होता।
कृषि भूमि मे विवाहित बहनों का हिसा बनता है जो हमारी हमारी पूश्तेनी सम्पति है
सर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपने मेरी समस्या का समाधान कियाा
मान्यवर, कदाचित इसमें वे सम्पत्तियां तो आती नहीं होंगी जिनके बारे में स्पष्ट विल पहले ही की जा चुकी हो..जैसे एक पिता ने अपनी संपत्ति अपने पुत्र पूत-वधु और उनके पुत्रो के नाम कर के या दर्शा दिया हो की वे उसे बेच नहीं सकते..उपभोग कर सकते हैं..क्या तब इस तरह की संपत्ति में तो पुत्री का अधिकार स्वतः समाप्त नहीं हो जाता?? क्योंकि संपत्तिदाता ने संपत्ति उसके पिता माता और भाइयों के नाम स्पष्ट रूप से कर दी है..