नामान्तरण संपत्ति के स्वामित्व का सबूत नहीं है।
समस्या-
कुशलगढ, जिला बांसवाडा, राजस्थान से संजय सेठ ने पूछा है –
मेरे स्वर्गीय दादाजी हमारे समाज के अध्यक्ष थे। 22 अप्रेल 1998 को लगभग 6 माह की बीमारी के उपरान्त उन का निधन हुआ। मेरे दादाजी की मृत्यु के समय मेरे चाचाजी ने उनसे सादे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिये थे एवं बाद में उस पर हमारी पैतृक सम्पति, समाज का अध्यक्ष पद तथा चल अचल सम्पति को वंशानुगत आधार पर मेरे चाचाजी के नाम लिख कर वसीयत तैयार कर ली। जबकि मेरे दादाजी की पैतृक सम्पति वर्तमान में नगरपालिका रिकार्ड में मेरे परदादा के नाम पर अंकित है। मेरे परदादा द्वारा मेरे दादाजी को वसीयत की हो ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। मेरे परदादा के भी दो पुञ थे जिन में से एक पुञ की काफी समय पहले ही म़त्यु हो चुकी थी, उनकी एकमाञ संतान पुञी जीवित है। इसके अतिरिक्त हम जिस समाज के सदस्य हैं उस समाज ने भी मेरे दादाजी को वंशानुगत आधार पर अध्यक्ष पद एवं चल अचल सम्पति वसीयत में देने संबंधी कोई अधिकार नहीं दिया था। वर्तमान में मेरे चाचाजी द्वारा नगरपालिका, कुशलगढ में उक्त फर्जी वसीयत के आधार पर हमारी समस्त पैत़क सम्पति अपने नाम कराने हेतु प्रार्थना पञ प्रस्तुत किया है। जिस पर मेरे द्वारा आपत्ति दर्ज करवा दी गई है। आपत्ति प्रस्तुत कर मेरे द्वारा मेरे दादाजी को वसीयत करने हेतु अधिकृत करने वाले दस्तावेजों की छायाप्रति चाही है। जो आज दिनांक तक मुझे नही मिली है। क्या ऐसी स्थिति में नगरपालिका मेरे चाचाजी के नाम पैतृक एवं सामाजिक चल अचल सम्पति, वंशानुगत आधार पर अध्यक्ष पद की इबारत लिखी हुई वसीयत को मान सकती है। मैं एक सामान्य परिवार से हूँ, जबकि मेरे चाचाजी काफी धनी व्यक्ति हैं, क्यों कि उन्होने सामाजिक राशि को अपने व्यापार में उपयोग लेकर कई गुना राशि अर्जित की है। इस के साथ साथ वे राजनैतिक रूप से भी प्रभावी हैं, जो अपने प्रभाव का दुरूपयोग कर मुझे पैतृक सम्पति से वंचित कर सकते हैं। मेरे चाचाजी ने जब हम 5 भाई बहन छोटे छोटे, नाबालिग थे तब वर्ष 1972 में मेरे पिताजी से एक सादे कागज पर भाईयों का भागबंटन करने के नाम से लिखा पढ़ी कर रखी है, जिस पर मेरे दादाजी के कहीं भी हस्ताक्षर नहीं हैं। मेरे दादाजी की वसीयत 3 अप्रेल 1998 को लिखी गई बताई गई है, जब वह अस्वस्थ थे। ऐसी स्थिति में मुझे सुझाव देने का कष्ट करें।
समाधान-
आप नगरपालिका द्वारा किए जाने वाले नामान्तरण से भयभीत हैं। वास्तविकता यह है कि नगरपालिका द्वारा किया गया नामान्तरण संपत्ति के स्वामित्व का सबूत नहीं है। इस संबन्ध में आप सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 24 सितम्बर 2004 को सुमन वर्मा बनाम भारत संघ के मामले में पारित निर्णय से मदद प्राप्त कर सकते हैं। आप ने कहा है कि उक्त संपत्ति नगरपालिका के रिकार्ड में आप के दादा जी के नाम लिखी है। इस से स्पष्ट है कि यह आप के दादा जी की संपत्ति है। लेकिन संपत्ति किस के द्वारा अर्जित की गई थी यह उस का साक्ष्य नहीं है। संपत्ति के स्वामित्व का साक्ष्य केवल उस संपत्ति को खरीदने का पंजीकृत विक्रय पत्र हो सकता है। इस कारण संपत्ति के स्वामित्व के सबूत के बतौर आप को संपत्ति के आप के परिवार के जिस पूर्वज के नाम वह हस्तांतरित हुई थी उस के नाम का हस्तांतरण विलेख तलाश करना चाहिए। यदि आप तलाश करेंगे तो उप रजिस्ट्रार के कार्यालय के रिकार्ड में वे मिल सकते हैं और उन की प्रतिलिपियाँ आप को प्राप्त करनी चाहिए। यदि ये दस्तावेज नहीं मिलते हैं तो लंबे समय से किस व्यक्ति का उस संपत्ति पर कब्जा रहा है उसी की साक्ष्य से उस संपत्ति का स्वामित्व तय होगा। यदि आप एक बार यह तय कर लें कि साक्ष्य के आधार पर यह संपत्ति दादा जी की है तो फिर आप उसी आधार पर उक्त संपत्ति के बँटवारे का वाद सिविल न्यायालय में दाखिल करें। उसी वाद में सिविल न्यायालय से नगर पालिका के विरुद्ध यह अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकते हैं कि बँटवारा होने तक नगर पालिका उक्त संपत्ति का नामान्तरकरण दर्ज न करे। यदि उक्त संपत्ति आप के दादाजी द्वारा अर्जित संपत्ति प्रमाणित होती है और उन का देहान्त 17 जून 1956 या उस के बाद हुआ है तो संपत्ति का विभाजन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उन के उत्तराधिकारियों में होगा।
वैसे भी नगरपालिका द्वारा आप की आपत्ति के बाद नामान्तरकरण को रोक देना चाहिए। यदि वे नहीं रोकते हैं या फिर आप के द्वारा विभाजन का वाद प्रस्तुत कर स्थगन प्राप्त करने के पूर्व नामान्तरकरण कर दिया जाता है तो उसे दीवानी न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। 1972 में सादा कागज पर किए गए भागाबंटन (बँटवारे) का कोई महत्व नहीं है। बँटवारा यदि आपस में किया गया हो तो वह पंजीकृत होना आवश्यक है। जहाँ तक सामाजिक संपत्ति का प्रश्न है वह संपत्ति समाज की है। समाज का नेतृत्व उस संपत्ति के बारे में वाद प्रस्तुत कर सकता है अथवा समाज के एक – दो व्यक्ति मिल कर लोग संपूर्ण समाज के हित में आदेश 1 नियम 10 दीवानी व्यवहार संहिता के अंतर्गत वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। ये वाद प्रस्तुत हो जाने के बाद आप के चाचा जी के धन और राजनैतिक प्रभाव के आधार पर संपत्ति का स्वामित्व तय नहीं हो सकेगा और केवल साक्ष्य के आधार पर संपत्तियों का बँटवारा और स्वामित्व तय होगा।
सर नमस्ते, मेरी भी कुछ इसी तरह की समाश्या है, ”नामांतरण संपत्ति के स्वमित्व का सबूत नहीं है” क्या यह बात उत्तराखंड में नगर क्षेत्र से बाहर कृषि भूमि पर भी लागू होगी, अगर हा तो कुछ उच्चतम न्यायलय की रुलिंग्स बताकर मेरा मार्ग दर्शन करें.. धन्यवाद्
एक बात और सर ये हिंदी टाइपिंग कैसे हो रही है कर तो मैं इंग्लिश टाइपिंग रहा हू कृपा कर बताएं…
मेरी दादी जी ने अपनी सारी संपत्ति अपने पुत्र को उप पंजीयक कार्यालय में नामांतरण कर दिया है तो क्या ओ मान्य नहीं होगा
उप पंजीयक कार्यालय में नामान्तरण नहीं होता है। वहाँ संपत्ति के हस्तान्तरण के दस्तावेज का पंजीकरण होता है। इस पंजीकरण से संपत्ति स्थानान्तरित हो जाती है।
मेरे गाँव में एक खातेदारी जमीं हैं जिसमे मेरे दादाजी के तिन चार पीढ़ी दूर के लोगो के नाम शामिल हैं जबकि पिछले ६०-७० वर्षो से उस जमीं पर हमारा कब्ज़ा हैं ये लोग हमारे गाँव में नहीं रहते है ६०-७० वर्षो से दुसरे जिले में रहते है और न ही कभी हमारे गाँव आते हैं. उनका हमारे गाँव में कोई मकान भी नहीं हैं. क्या इस जमीं को हम हमारे नाम से करवा सकते हैं इसका क्या प्रावधान हैं. मेरे दादाजी के देहांत के बाद पिताजी के नाम का जमीं का नामांतरण हो गया है. जबकि उनके नाम की जो जमीं है उनकी तीसरी चौथी पीढ़ी हैं परन्तु उनका नाम खातेदारी में नहीं हैं. उनके पूर्वजो का नाम खातेदारी में है. उनके नाम का नामांतरण नहीं हुआ है . उक्त जमीं हम हमारे नाम से कैसे करवा सकते है क़ानूनी प्रावधान बताने की कृपा करावे .
वकील सा. उपरोक्त समस्या मेरी भी है ,कृपया इसका समाधान बतावें ,धन्यवाद l
श्रीमानजी,
आप के द्वारा दिए गए सुझावों के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद आगे भी इसी तरह गरीब असहाय लोगो को सहायता उपलब्ध कराये
संजय सेठ
कुशलगढ़
जिला बांसवारा
राजस्थान