स्वयं अपनी उपस्थिति में दावे को रेस्टोर कराएँ और प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराएँ।
दीपक सिन्हा ने सी-39 सेक्टर ई लखनऊ, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिताजी ने अपनी कृषि भूमि का कुछ हिस्सा पॉवर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से बेचा था। गाँव के कुछ आपराधिक प्रवत्ति के लोगों ने मिलीभगत से एक फर्जी नाम की पॉवर ऑफ अटॉर्नी तैयार कर उन की शेष भूमि भी अपने नाम रजिस्टर करा ली। जानकारी मिलने पर पिताजी ने सभी दोषियों के खिलाफ केस कर दिया। निवास स्थान से दूरी ज्यादा होने की वजह से वे अपने अधिवक्ता को हर तारीख पर पैरवी के लिए भेजते रहे। इस के लिए अधिवक्ता महोदय उनसे फीस भी लेते रहे। अचानक उन्हे गाँव के ही एक शुभचिंतक से पता लगा कि उनका केस लगातार तीन बार कोर्ट में हाज़िर न होने की वजह से खारिज हो गया है एवं दूसरे पक्ष ने भूमि किसी और से पैसा लेकर उसके नाम रजिस्टर करा दी है। अपने अधिवक्ता से पूछने पर उन्होने अपनी गलती स्वीकार की और केस को दुबारा चलाने के लिए अर्जी लगाने का आश्वासन दिया। भूमि वापस पाने के लिए हमें क्या करना चाहिये
समाधान-
आप ने यह विवरण नहीं दिया है कि यह किस प्रकार का मुकदमा था। आप अपने पिताजी के जिस मुकदमे का उल्लेख कर रहे हैं वह संभवत विक्रय पत्र को निरस्त करने का दीवानी मुकदमा होगा। यदि अधिवक्ता ने अपनी गलती स्वीकार की है और उसे दुरुस्त करने को तैयार है तो उस के आश्वासन पर रहना गलत है। आप के पिताजी को स्वयं अपनी उपस्थिति में मुकदमे को रेस्टोर कराने का आवेदन देना चाहिए और जल्दी से जल्दी उसे रेस्टोर कराना चाहिए।
एक बार मुकदमा रेस्टोर हो जाए तो जिस पक्षकार के नाम इस बीच विक्रय पत्र पंजीकृत कराया गया है उसे भी इस मुकदमे में पक्षकार बनाने के लिए आवेदन करना चाहिए तथा आगे विक्रय पर रोक के लिए अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन दे कर आदेश पारित कराना चाहिए।
इस तरह फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बना कर जमीन को बेचना फ्राड और छल दोनों है। आप के पिताजी को चाहिए कि वे इस अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाएँ। यदि पुलिस इस तरह की रिपोर्ट दर्ज करने से इन्कार करे तो न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर इसे धारा 156 (3) में पुलिस थाने को अन्वेषण हेतु भिजवाना चाहिए। ये लोग केवल दीवानी मुकदमे से काबू में न आएंगे। हालांकि आप को जमीन अपने कब्जे में बनाए रखने और स्वामित्व पुनः प्राप्त करने के लिए राहत दीवानी और राजस्व न्यायालयों से ही प्राप्त होगी।
श्रीमान जी , क्या उपरोकर मामले में अधिवक्ता के खिलाफ ( अधिवक्ता अधिनियम १९६१ ) के तहत कार्यवाही नहीं की जा सकती है ?
काम जानकारी के बावजूद बहुत अच्छे से मार्गदर्शन दिया गया है.. अप्रतिम है.. पीड़ित को निर्णय लेने हेतु स्पष्टता प्रदान की गयी है..