माता-पिता की सेवा करने मात्र से कोई पुत्र उन की संपत्ति का अधिकारी नहीं होता।
सुरेश प्रजापत ने डूंगरपुर, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिताजी का देहांत करीबन १५ वर्ष पहले हो चुका है। हम तीन भाई हैं और हमारे पिताजी से प्राप्त सभी भूमि का बटवारा राजस्व के अनुसार हमारे तीनों भाइयों के नाम है। उक्त भूमि अपने अपने हिस्से का उपयोग या बेचान हेतु तीनों की बिना अनुमति से उपयोग लिए क्या करना चाहिए? क्योंकि मेरे दो भाई किसी भी मामले में साथ नहीं दे रहे हैं ओर मेरे हिस्से की जमीन भी मुझसे हस्तान्तरण नहीं करने दे रहे हैं और वक्त पर कहीं भी हस्ताक्षर नहीं करने आते हैं। मेरी माताजी अभी मेरे पास ही रहती हैं लेकिन वो हमेशा मेरे बड़े भाई का पक्ष लेती हैं। इस मामले में क्या हमारी माताजी किसी एक पुत्र को हमारी जमीन नाम कर सकती है ? उक्त मामले में मुझे क्या करना चाहिए? मेरे माताजी करीबन २० वषों से मेरे पास ही है उन का पालन पोषण मैं ही करता हूँ मेरे बड़े भाई अपनी अपनी शादी करके पहले से अलग हो गए हैं। आज से २० वर्ष पहले मुझे माँ के नाम अलग से हिस्सा देने की बात की थी लेकिन वो मोखिक बात थी। अभी बड़े भाई इस बात को मानने को राजी नहीं हैं, माताजी मेरे पास रहती है उसका प्रमाण मेरे पास अपना मुखिया का राशन कार्ड है। क्या मैं राशन कार्ड को आधार मानते हुए माँ का अलग से हिस्सा ले सकता हूँ? बल्कि हमारी माँ को मैं ने २० साल तक सेवा की है मगर फिर भी वे मेरे पक्ष में नहीं है उसका कारण मेरे बड़े भाई ने माँ को अभी विदेश घुमाने का लालच दे रखा है माँ अभी गुमराह हो रही है। बल्कि २० वर्ष पहले दोनों भाई हमें माता पिता की सम्पति से कुछ भी हिस्सा नहीं चाहिए एसा कह करके अपनी शादी करके माताजी को मेरे भरोसे छोड़ करके परिवार से अलग हो गए थे। मेरे पास लिखित प्रमाण नहीं होने का अभी वो फायदा उठा रहे हैं। आप बताएँ मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान–
आप के पिताजी के देहान्त के उपरान्त राजस्व विभाग में आप के पिता के भूमि के खाते का इन्तकाल, नामान्तरण हुआ होगा। जिस में आप तीनों भाइयों और आप की माताजी का नाम हिस्से दर्ज हुए होंगे। लेकिन इसे बंटवारा नहीं कहा जा सकता। आज भी राजस्व रिकार्ड में जमीन संयुक्त होना चाहिए। यह आप खाते की नकल के माध्यम से या राजस्थान का अपना खाता इंटरनेट पर खोल कर खुद देख सकते हैं।
अलग अलग खाते करने और अपनी अपनी जमीन पर पृथक कब्जा प्राप्त करने के लिए आप चारों को आपस में मिल कर पारिवारिक समझौता कर के बंटवारा करना होगा और उस के आधार पर अलग अलग खाते कराए जा सकते हैं या फिर बंटवारे का दावा कर के न्यायालय से निर्णय कराना पड़ेगा। लेकिन कोई भी खातेदार संयुक्त खाते में अपने हिस्से की जमीन को बिना बंटवारा किए भी हस्तान्तरित कर सकता है। उस में सहखातेदारों के हस्ताक्षर की कोई आवश्यकता नहीं है। अपने हिस्से की जमीन या उस का कोई भी हिस्सा वह विक्रय कर सकता है इस के लिए वह विक्रय पत्र निष्पादित कर उसे पंजीकृत करवा सकता है और अपने कब्जे की जमीन में से विक्रय की गयी जमीन के बराबर जमीन क्रेता के कब्जे में दे सकता है।
इस से क्रेता को जमीन पर कब्जा भी मिल जाता है और वह उस का टीनेंट भी हो जाता है। संयुक्त खाते में उस का नाम एक हिस्सेदार के रूप में दर्ज हो जाता है। बाद में क्रेता स्वयं या कोई भी हिस्सेदार संयुक्त खाते का बंटवारा करवा कर सब के खाते अलग अलग करवा सकता है।
जहाँ तक माता जी और भाइयों का प्रश्न है वह भावनात्मक अधिक है। पुत्रों का फर्ज है कि वे माता पिता की उन के जीवन काल में उन की सेवा करें। आप कर रहे हैं और आप के भाई नहीं कर रहे हैं। फिर भी आप की माता जी बड़े भाई का पक्ष लेती हैं तो आप कुछ नहीं कर सकते। आप उन का भरण पोषण कर रहे हैं इस कारण माता जी का हिस्सा आप का नहीं हो सकता। कर्तव्य निभाने से अधिकार नहीं मिलता है। पहले भाई कुछ कहते थे अब कुछ कहते हैं इस से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। माताजी किसी भी पुत्र को अपना हिस्सा दे सकती हैं या फिर किसी को नहीं दे सकती हैं। यदि किसी को नहीं देती हैं या वसीयत भी नहीं करती हैं तो उन का हिस्सा उन के जीवनकाल के उपरान्त तीनों भाइयों को बराबर मिल जाएगा। लेकिन वह सारी भूमि को किसी एक को नहीं दे सकतीं क्यों कि वे भी एक हिस्से की ही टीनेंट हैं अर्थात यदि आप तीन भाई और माताजी के अलावा कोई हिस्सेदार नहीं है तो उन का हिस्सा भी चौथाई ही है और पास तीनों भाइयों के हिस्से भी चौथाई ही हैं। मेरा तो मानना है कि आप की माताजी समझदार हैं। वे आप के साथ रहती हैं। लेकिन आप को यह नहीं कहना चाहतीं कि उन का सारा हिस्सा आप का है। इस से वे अपने दो बेटों से सदा के लिए दूर हो जाएंगी जो कोई भी माँ नहीं चाहती। बल्कि आप को हमेशा चिन्ता में बनाए रखती हैं और दोनों बेटों को इस लालच में रखती हैं कि वे उन्हें भी हिस्सा दे सकती हैं।
हम ने अपनी राय रख दी आगे आप को क्या करना है? यह निर्णय तो आप को खुद ही करना होगा।
मेरी समस्या आपने भेजी है वो अभी तक साईट मै खूल नही रही है
आपके द्वारा बेहद सटीक क़ानूनी जानकारी दी जाती है मै भी एक ऐसे बुरे दौर से गुजर रहा हू जहाँ हमारा दूर का भाई कह रहा है की हमारे दादा पैदा ही नहीं हुए थे उनकी समस्त सम्पति उसके पिता जिनका उसको सही नाम तक भी पता नहीं है उनकी समपति है क्योंकि उस समय के सरपंच व पटवारी ने जमींन के कागजों में उसके पिताजी का गलत नाम लिख दिया बुजुर्गों ने रिकॉर्ड पर कभी धयान नहीं दिया अब वह भाई सब का हिस्सा खा जाना चाहता है हमें झूठे मुक़दमे लड़ने को मजबूर कर दिया गया है आपका ब्लॉग पढ़कर शकुन मिलता है शुक्रिया भगवान आपको लमी उम्र दे
एक बार फिर उपयोगी जानकारी…..मुझे दुःख होता है कि लोगों के अपने कर्म पर विश्वास न होकर पूर्वजों की संपत्ति पर अधिक होता हैं। और इसके लिए लोग रात-दिन एक कर देते हैं। काश यही जूनून अपने कर्म में डाल दे फिर उससे कहीं संपत्ति खड़ा कर सकते हैं. परंतु यहाँ तो लोग फ्री में मिले १ रुपया की संपत्ति के लिए अपने रिश्तेदारों की हत्या भी कर देते हैं……यह सब अत्ययन्त दुःखद है…