विवाह विच्छेद पर या उस से पहले पत्नी का पति की संपत्ति में अधिकार …
|सिया मिश्रा ने पटना, बिहार से समस्या भेजी है कि-
मेरी शादी को लगभग आठ वर्ष हो गए। मेरे पति शराब के आदि हैं और कोई स्थाई नौकरी भी नहीं करते। शादी के बाद से ही घर में लड़ाई झगड़ा और मार पीट होता था। मेरे लिए वे हमेशा ही अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते और कई बार अमर्यादित काम भी किया है। ढाई वर्ष तक मैं खुद की नौकरी से घर चलाती रही। जब मेरे पिता को जब इसकी जानकारी हुई तो वे मुझे अपने साथ मायके ले आये। तब से मैं अकेले ही रहती हूँ। इस बीच कई बार मेरे पति में मुलाक़ात हुई परन्तु उनका रवैया वही रहा। इन आठ वर्षों में उन्होंने मेरे जीवन यापन के लिए कोई खर्च नहीं दिया। मेरे पति के पास पैतृक संपत्ति है जिसका बँटवारा अभी नहीं हुआ है। अगर मैं अपने पति से तलाक लूं तो क्या मेरे पति के हिस्से में आधा की दावेदार बन सकती हूँ। क्योंकि मेरे पति के पास न ही कोई घर है और न ही स्थाई नौकरी। हालाँकि मेरे पति मुझे अपने साथ रखना चाहते हैं परन्तु उनके व्यवहार और नौकरी न होने के कारण मैं उनके साथ नहीं रहना चाहती। मेरी अब तक कोई संतान नहीं है। मेरे ससुर ने मेरे देवर की पत्नी के नाम से एक फ़्लैट खरीदा है। मुझे जानना है कि मुझे मेरा हिस्सा तलाक के पहले ही मिल सकता है या फिर तलाक के साथ। क्या उनके पैतृक संपत्ति में मैं दावा कर सकती हूँ। कृपया मेरा सही मार्गदर्शन करें।
समाधान-
आप के पति की पैतृक संपत्ति पुश्तैनी भी है या नहीं? इस की जानकारी करें। हर पैतृक संपत्ति पुश्तैनी नहीं होती। जो संपत्ति 17 जून 1956 के पूर्व परिवार के किसी पुरुष को अपने पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है वही पुश्तैनी हो सकती है। पत्नी का इस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। पिछली केन्द्र सरकार के समय हिन्दू विवाह अधिनियम में इस तरह का संशोधन प्रस्तावित था कि तलाक के समय पत्नी को पति की संपत्ति का हिस्सा दिया जाना चाहिए जिसे न्यायालय निर्धारित करे कि वह आधा होगा या उस से कम या अधिक। लेकिन ऐसा संशोधन बिल अभी तक संसद में प्रस्तुत नहीं हुआ है।
पत्नी अपने पति से केवल भरण पोषण का अधिकार रखती है। उस में भी यह देखा जाना है कि वह स्वयं अपना भरण पोषण करने में कितना सक्षम है। इस से अधिक का उसे कोई कानूनी अधिकार अभी तक प्राप्त नहीं है। कुल मिला कर अभी तक भी विवाहित स्त्री के अपने पति से मिलने वाले अधिकारों की स्थिति वही की वही है जो प्राचीन हिन्दू विधि में थी। यदि मासिक या स्थाई (एकमुश्त) भरण पोषण के लिए न्यायालय कोई आदेश देता है तो उस के निष्पादन में अविभाजित हिन्दू परिवार में उस के पति के हिस्से को कुर्क किया जा सकता है। यही आप को अधिकार है। इस का विवाह विच्छेद से कोई संबंध नहीं है।
यदि आप तलाक लेना चाहती हैं और आप के पास उस के लिए पर्याप्त आधार हैं तो आप को उस के लिए आवेदन बिना देरी के दे देना चाहिए। इस के साथ ही आप को स्थाई पुनर्भरण व भरण पोषण के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अन्तर्गत एक मुश्त धनराशि की मांग करनी चाहिए जो आप की आय, दोनों परिवारों के सामाजिक आर्थिक स्तर और पति की संपत्ति पर निर्भर करेगी।
आप के पति का हिस्सा इधर उधर न कर दिया जाए इस के लिए धारा 25 का आवेदन प्रस्तुत करने और न्यायालय में पंजीकृत होने के उपरान्त दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 38 नियम 5 के अन्तर्गत संयुक्त संपत्ति मे आप के पति के हिस्से को निर्णय के पूर्व कुर्क कर लिए जाने का आवेदन दिया जा सकता है। इस आवेदन में आप को न्यायालय के समक्ष यह बताना होगा कि आप का पति अपनी संपत्ति को इधर उधर हस्तान्तरित और खुर्द बुर्द कर सकता है।