उत्तराधिकारी अन्य हिस्सेदार के पक्ष में अपने हिस्से के त्याग के लिए हक-त्याग विलेख निष्पादित करे।
समस्या-
चौमहला, राजस्थान से दिनेश जैन ने पूछा है-
मेरी माताजी का निधन 15 अगस्त 2012 को अचानक हो गया उनकी कोई वसीयत नहीं है। हम 2 भाई हैं व 3 बहनें हैं तथा पिताजी भी हैं| माताजी की 2 दुकानें हैं | हम दोनों भाई साथ रहते हैं। हम दोनों चाहते हैं कि माताजी की सम्पति हमारे नाम हो जाए। इस में बहनों, पिताजी या किसी अन्य को कोई एतराज नहीं है| ये सम्पति हमारे नाम कैसे हो सकती है?
समाधान-
दोनों दुकानें माता जी की संपत्ति थीं। माता जी ने उक्त दुकानों के सम्बन्ध में कोई वसीयत नहीं की थी। इस तरह माता जी के देहान्त के साथ ही उक्त संपत्ति हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (क) के अनुसार उन के प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों अर्थात आप दोनों भाइयों, तीनों बहिनों व पिताजी की संयुक्त संपत्ति हो चुकी है तथा आप में से प्रत्येक 1/6 हिस्से का अधिकारी है।
अब जिस संपत्ति में जो व्यक्ति अपना हिस्सा छोड़ना चाहे तथा जिस के हक में छोड़ना चाहे एक हक-त्याग विलेख (Release Deed) उपपंजीयक के यहाँ पंजीकृत करवा कर छोड़ सकता है।
यदि दोनों दुकानें दोनों भाइयों के नाम करवानी हैं और किसी को कोई आपत्ति नहीं है तो आप की तीनों बहिनों व पिता जी को आप दोनों भाइयों के नाम से हक-त्याग विलेख (Release Deed) निष्पादित करवानी होगी। इस से दोनों दुकानों पर दोनों भाइयों का सम्मिलित स्वामित्व स्थापित हो जाएगा।
लेकिन यदि आप चाहते हैं कि एक दुकान आप के व दूसरी आप के भाई के नाम हो जाए तो जिस दुकान को आप रखना चाहते हैं उस में आप की तीनों बहिनें, पिताजी और आप के भाई को हक-त्याग विलेख (Release Deed) निष्पादित कर आप के हक में अपना अपना हिस्सा का हक-त्याग करना होगा। इस से आप को उस दुकान पर एकल स्वामित्व का हक प्राप्त हो जाएगा। इसी तरह जिस दुकान को आप का भाई रखना चाहता है उस दुकान में तीनों बहिनें, पिताजी और आप को अपना-अपना हिस्सा भाई के हक में त्याग करने के लिए हक-त्याग विलेख (Release Deed) निष्पादित कराने से आप के भाई का एकल स्वामित्व उस दुकान पर प्राप्त हो जाएगा।