एक व्यक्ति दो सन्तानें तथा 15 वर्ष से अधिक के बालक का दत्तक ग्रहण नहीं कर सकता
समस्या-
कोयल ने गाँव रानोली, जिला सीकर, राजस्थान से पूछा है-
पाँच वर्ष पहले मेरा दूसरा विवाह हो गया है। मेरे पहले विवाह से दो पुत्र हैं। दोनों अब बालिग हैं। एक की उम्र 19 वर्ष तथा दूसरे की 21 वर्ष है। क्या मेरे वर्तमान पति दोनों पुत्रों को दत्तक ग्रहण कर सकते हैं? वर्तमान नियम के अनुसार क्या दोनों को दत्तक ग्रहण किया जा सकता है?
समाधान-
आपने यह नहीं बताया है कि क्या आपके पहले पति जीवित हैं और क्या वे दत्तक ग्रहण कराने को तैयार हैं? क्योंकि इस समस्या के समाधान के लिए यह एक आवश्यक तथ्य था। हालाँकि इन तथ्यों के बिना भी आपकी समस्या का समाधान प्रस्तुत किया जा सकता है।
दत्तक ग्रहण के लिए यह अनिवार्य है कि दत्तक देने वाले व ग्रहण करने वाले दोनों माता-पिता की सहमति हो। क्योंकि इस मामले में दत्तक देने वाली माता और प्राप्त करने वाली माता एक ही है इस कारण वास्तविक पिता ग्रहण करने वाले पिता को दत्तक ग्रहण करवा सकते हैं यदि दोनों की सहमति हो।
लेकिन इस मामले में अन्य अड़चनें हैं। 15 वर्ष से अधिक की आयु के बालक/बालिका का दत्तक ग्रहण नहीं किया जा सकता। आपके दोनों पुत्रों की उम्र 15 वर्ष से अधिक है इस कारण सामान्य रूप से दत्तक ग्रहण संभव नहीं है। यदि दोनों परिवारों में पूर्व से यह परंपरा रही हो कि 15 वर्ष से अधिक के व्यक्ति का भी दत्तक ग्रहण हो सकता है तो ही यह दत्तक ग्रहण संभव हो सकता है। लेकिन उसमें भी यह बाधा है कि दोनों पुत्र वयस्क हैं इस कारण से उनकी सहमति भी आवश्यक है। एक बाधा यह है कि परंपरा को साबित करना अत्यन्त दुष्कर होता है और उसे कभी भी चुनौती दी जा सकती है।
यदि उक्त दोनों बातें संभव हो जाएँ तब भी एक व्यक्ति एक ही सन्तान को दत्तक ग्रहण कर सकता है, दूसरे को नहीं। इस कारण आपके मामले में दोनों बालकों का दत्तक ग्रहण कराना संभव नहीं है।
आपको यह मान कर चलना चाहिए कि आप अपने दोनों पुत्रों को अपने वर्तमान पति को दत्तक ग्रहण नहीं करा सकतीं। दत्तक ग्रहण कराने का केवल यह प्रभाव होता है कि दत्तक सन्तान दत्तक पिता की स्वअर्जित तथा सहदायिक संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त कर सकती है। सहदायिक सम्पत्ति तो अब वैसे भी नाम मात्र की रह गयी है। यदि आपके वर्तमान पति को उनकी सम्पत्ति आपके दोनों पुत्रों को देना चाहते हैं तो वे उसकी वसीयत कर सकते हैं। वसीयत में बस यही दोष है कि उसे वसीयत करने वाला उसके जीवनकाल में कभी भी वसीयत को बदल सकता है।