DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

कोई हिन्दू एक विवाह में रहते हुए दूसरा विवाह नहीं कर सकता

समस्या-

मुजफ्फर नगर, उत्तर प्रदेश से मनु प्रकाश त्यागी ने पूछा है-

कोई भी राज्य सरकार में कार्यरत कर्मचारी एक पत्नी होते हुए दूसरी शादी किन परिस्थितियों में कर सकता है? यदि पहली पत्नी लिखित सहमति दे दे तो क्या पति दूसरा विवाह कर सकता है?  मै इस प्रश्न से मिलती जुलती आप की एक पोस्ट पढ चुका हूं जिसमें आपने बताया था कि सेवा शर्तों से बंधे होने के कारण मुस्लिम भी दूसरी शादी नहीं कर सकता।  जबकि ये प्रश्न तो मै हिंदू विधि से शासित व्यक्ति के बारे में पूछ रहा हूं।  पर यदि अपरिहार्य कारण आ जाये तो कोई तो रास्ता होगा जबकि पहली पत्नी भी सहमत हो तो?

समाधान-

विवाह का एक निश्चित अर्थ है। विवाह में एक स्त्री-पुरुष साथ रहते हैं, वे यौन संबंध स्थापित करते हैं, जिन से संतानोत्पत्ति हो सकती है। यदि संतान उत्पन्न होती है तो उस संतान के प्रति पति व पत्नी के कुछ कानूनी दायित्व उत्पन्न होते हैं और संतान को अधिकार। संतान उन पति-पत्नी की कही जाती है। यदि पति-पत्नी के पास कुछ संपत्ति हो तो उस में उन के जीवित रहते और उन की मृत्यु के उपरान्त संतान के कुछ अधिकार होते हैं। संतान के वयस्क और सक्षम हो जाने पर उस के भी माता-पिता के प्रति दायित्व उत्पन्न होते हैं और माता-पिता को अधिकार। इस के अतिरिक्त पति-पत्नी के भी एक दूसरे के प्रति अधिकार और दायित्व होते हैं। जो जीवन पर्यन्त या विवाह के अंत तक बने रहते हैं। इस तरह विवाह बहुत सारे अधिकार और दायित्व उत्पन्न करता है। इन अधिकारों और दायित्वों का निर्धारण विधि द्वारा होता है। यह विधि सामान्य और व्यक्तिगत दोनों हो सकती है। इस कारण कोई भी विवाह केवल विधि के अनुरूप ही हो सकता है विधि के विपरीत नहीं। केवल वही विवाह वैध कहलाएगा जो कि विधि के अनुसार हो। अन्य सभी विवाह वैध नहीं हैं। वे या तो प्रारंभ से शून्य होंगे या उन्हें न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कराया जा सकता है।

मुस्लिम विधि द्वारा एक पुरुष को एक समय में कुछ शर्तों के साथ चार तक विवाह करने और उन्हें बनाए रखने की छूट है। लेकिन हिन्दू विधि में ऐसा नहीं है। कोई भी हिन्दू एक समय में एक ही विवाह को बनाए रख सकता है। एक विवाह के बने रहने तक कोई भी हिन्दू पुरूष या स्त्री दूसरा विवाह नहीं कर सकते। यदि वे ऐसा विवाह करते हैं तो वह अवैध और शून्य है। उसे विवाह का कोई भी पक्षकार या उस विवाह से प्रभावित होने वाला व्यक्ति शून्य घोषित करवा सकता है। आप यह समझ सकते हैं कि एक हिन्दू एक विवाह को बनाए रखते हुए दूसरा विवाह नहीं कर सकता। यदि करता है तो वह विवाह वैध नहीं होगा और शून्य होगा चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो या न हो।

कोई भी नियोजक विशेष रूप से यदि नियोजक केन्द्र या राज्य सरकार या उस का कोई संस्थान है तो एक अवैध विवाह करने वाले को नियोजन में क्यों रखना चाहेगा? नियोजन में रहते हुए एक विवाह करना जो अवैध है एक दुराचरण भी होगा। इस तरह का विवाह करने के उपरान्त नियोजक की जानकारी में आने के उपरान्त यह नियोजक पर निर्भर करता है कि वह उस कर्मचारी के विरुद्ध कोई अनुशासनिक कार्यवाही करता है या नहीं? कोई ऐसा नियोजक जिस का सरकार से कोई संबंध नहीं है वह तो एक बार ऐसे कर्मचारी को अपने नियोजन में बर्दाश्त भी कर सकता है लेकिन ऐसा नियोजक जो संविधान के अनुसार राज्य के रूप में परिभाषित होता है वह तो कदापि ऐसे कर्मचारी को अपने नियोजन में नहीं रख सकता।

नेक सरकारों ने यह नियम बना रखा है कि यदि कोई कर्मचारी विवाहित रहते हुए दूसरा विवाह कर लेता है तो यह एक दुराचरण होगा। इस नियम को जान कर ही कोई व्यक्ति नौकरी को ग्रहण करता है और इस नियम से बंध जाता है। इस तरह एक मुस्लिम विधि से शासित व्यक्ति भी नौकरी में रहते हुए दूसरा विवाह करता है तो यह उस की व्यक्तिगत विधि के अंतर्गत सही है लेकिन नियोजन में एक दुराचरण कहलाएगा और उस का नियोजन में बने रहने का अधिकार समाप्त हो जाएगा। उसे अनुशासनिक कार्यवाही द्वारा नियोजन से अलग किया जा सकता है।

स तरह किसी हिन्दू के पास एक विवाह में रहते हुए दूसरा विवाह करने का कोई मार्ग नहीं है। पत्नी की सहमति के उपरान्त भी नहीं है। पत्नी की सहमति से हुआ दूसरा हिन्दू विवाह भी वैध नहीं है। एक हिन्दू पुरुष या स्त्री केवल पहले विवाह को विच्छेद कर के ही दूसरा विवाह कर सकती है। इस लिए विशिष्ठ परिस्थितियों में एक ही उपाय है कि पत्नी की सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री न्यायालय के माध्यम से प्राप्त की जाए और फिर दूसरा विवाह किया जाए। विवाह विच्छेद के उपरान्त पहली पत्नी से संबंध बनाए रखना भी इसलिए संभव नहीं है कि दूसरी पत्नी इस के लिए सहमत नहीं होगी। सहमत होगी तो भी वह भविष्य में किसी भी समय अपनी असहमति व्यक्त कर सकती है और संभव कानूनी कार्यवाहियाँ कर सकती है।

One Comment