पहली पत्नी के रहते दूसरा विवाह अवैध, लेकिन उस से उत्पन्न संतान वैध है और उत्तराधिकार में अन्य संतानों को समान अधिकार भी
समस्या-
पटना, बिहार से अमित कुमार पूछते हैं-
मेरी पहली शादी 2001 में हुई थी। मेरी पहली पत्नी को 8 साल तक कोई सन्तान नहीं हुई। हम ने बहुत जगह दिखाया। पर कुछ नहीं हुआ। तब मैं ने पत्नी और परिवार के कहने पर दूसरी शादी 2009 में कर ली। दूसरी पत्नी से मुझे 1 लडका है। अब मेरी पहली पत्नी को भी 1 लडका हो गया है जो 6 माह का है। सभी का कहना है कि अब मेरी दूसरी पत्नी से हुए लडके को मेरी सम्पत्ति से कुछ नहीं मिलेगा। अभी तो मेरी दोनों पत्नी साथ रहती हैं, पर मैं अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हूँ। मेरी समझ में नही आ रहा है कि मैं क्या करुँ जिससे मेरे दोनो बच्चों को उनका हक मिले और भविष्य में कोई विवाद न हो। क्या मैं अपनी संम्पत्ति वसीयत करवा कर दोनों संतानों को अपनी जायदाद का मालिक बना सकता हूँ? क्या मेरी पहली पत्नी या मैं अपनी संम्पत्ति का आधा भाग दूसरी पत्नी के बच्चे को दान में दे सकता हूँ? क्या मैं अपनी सम्पत्ति का आधा भाग दूसरी पत्नी को बेच सकता हूँ? या और क्या हो सकता है जिससे मेरे दोनो बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाये? कोई तो उपाय होगा? मैं बहुत चिंतित हूँ, मेरी मदद करें।
समाधान-
आप को जो सूचना दी गई है वह पूरी तरह सही नहीं है। आप की सारी संपत्ति जो आप के नाम है वह आप के जीवनकाल में आप की है उस पर जीवनकाल में आप का अधिकार है आप उसे विक्रय, दान या वसीयत कुछ भी कर सकते हैं। इसी तरह आप की पहली या दूसरी पत्नी के नाम जो संपत्ति है वह उन की अपनी अपनी है वे उसे का साथ कुछ भी कर सकती हैं।
यदि आप कोई वसीयत करते हैं तो वह आप के जीवन काल में कोई प्रभाव नहीं रखेगी। और आप के देहान्त के उपरान्त तुरन्त प्रभावी हो जाएगी आप जिसे जो संपत्ति वसीयत कर देंगे और वह उन्हें प्राप्त हो जाएगी। यदि आप कोई वसीयत नहीं करते हैं तो आप की सम्पत्ति के तीन हिस्से होंगे एक आप की पहली पत्नी को मिलेगा और शेष हिस्से दोनों संतानों को बराबर प्राप्त होगा। इस तरह यदि कोई वंचित रहेगा तो आप की दूसरी पत्नी वंचित रहेगी न कि आप की दूसरी पत्नी से उत्पन्न संतान। क्यों कि आप का दूसरा विवाह वैध नहीं है लेकिन संतान कभी अवैध नहीं होती। वह तो आप की है। उसे तो आप की स्वअर्जित संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त होगा। केवल ऐसी संपत्ति जो सहदायिक संपत्ति है। उस में आप की दूसरी पत्नी से उत्पन्न पुत्र सहदायिक नहीं बन सकेगा। उसे उस तरह की संपत्ति में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होगा। लेकिन मुझे संदेह है कि आप का किसी सहदायिक संपत्ति में कोई अधिकार होगा। क्यों कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में लागू हुआ था और उस के बाद सहदायिक संपत्ति का निर्माण होना बंद हो गया था। सहदायिक संपत्ति वह है हो सकती थी जो आप को अपने पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है। लेकिन ऐसी संपत्ति का 1956 के बाद आप के पिता के जीवनकाल में या उस के बाद कोई विभाजन हो चुका है तो वह भी सहदायिक संपत्ति नहीं है। वैसे भी सहदायिक संपत्ति को न तो आप बेच सकते हैं न वसीयत कर सकते हैं। क्यों कि उस सम्पत्ति में तो पहली पत्नी का पुत्र जन्म से ही सहदायिक बन चुका है। अधिक से अधिक सहदायिक संपत्ति में अपने हिस्से को वसीयत कर सकते हैं।
आप अपनी स्वअर्जित संपत्ति को वसीयत कर सकते हैं। यह वसीयत आप के देहान्त के उपरान्त प्रभावी होगी। लेकिन इस वसीयत को आप अपने जीवन काल में बदल भी सकते हैं और दूसरी कर सकते हैं। किसी भी संपत्ति के संबंध में आप की अन्तिम वसीयत ही प्रभावी होगी। आप अपनी संपत्ति का आधा भाग दूसरी पत्नी की संतान को दान कर सकते हैं। लेकिन दान करते ही आप का उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रहेगा। वैसे भी दूसरी पत्नी की संतान को तो आप की संपत्ति में आप की पहली पत्नी की संतान के बराबर उत्तराधिकार मिलने वाला है। उस के लिए आप को चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में आप की दूसरी पत्नी को आप की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। यदि चिन्ता करनी है तो उस की करनी है। आप उस के नाम कुछ संपत्ति कर सकते हैं जिस से उस की सुरक्षा हो सके। लेकिन यदि उसे कोई संपत्ति दान या विक्रय करते हैं तो वह उस की हो जाएगी और उस पर आप का कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा। जब कि आप की पहली पत्नी के पास उसी समय कोई संपत्ति नहीं रहेगी और यह परिवार में क्लेश का कारण बनेगा। यदि आप को किसी एक पत्नी के नाम संपत्ति दान या विक्रय या वसीयत करनी है तो दूसरी पत्नी के नाम भी उतनी ही संपत्ति दान या विक्रय या वसीयत करनी होगी। तभी परिवार में सुख शान्ति बनी रह सकती है।