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बुआओँ को दादा-दादी की संपत्ति में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है।

rp_land-demarcation-150x150.jpgसमस्या-
श्याम ने इन्दौर/ मऊ, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरे दादा जी का देहान्त 1988 में हो चुका है उन के दो पुत्र और छह लड़कियाँ हैं। पिताजी उन में सब से बड़े हैं। दादी जी का देहान्त 2006 में हो चुका है। दादाजी की 64 बीघा जमीन है जिस का मौखिक बँटवारा दोनों भाइयों के बीच मौखिक रूप से मेरी बुआओं की उपस्थिति में 1988 में ही हो चुका था तभी से दोनों भाई अलग अलग खेती कर रहे हैं। मौखिक बँटवारे का कोई सबूत नहीं है केवल गाँव के लोग जानते हैं। अब बुआएँ जमीन में बराबर का हिस्सा मांग रही हैं। क्या वे सभी बुआएँ अपना हिस्सा ले सकती हैं दादाजी की मृत्यु के बाद पिताजी और चाचा जी का नाम राजस्व रिकार्ड में दर्ज हुआ था बाद में पटवारी ने बिना नोटिस बुआओँ का नाम भी खसरा में चढ़ा दिया।

समाधान-

दादा जी की मृत्यु के बाद हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उन की संपत्ति के उत्तराधिकारी उन की आठ संतानें और दादी हुई। इस तरह संपत्ति में इन सब का 1/9 हिस्सा रहा। आप के पिता और चाचा ने जमीन के कब्जे का बँटवारा किया खेती करने के लिए। राजस्व रिकार्ड में यह बंटवारा दर्ज नहीं हुआ। आप की बुआओं ने जमीन में अपने स्वामित्व का कभी त्याग नहीं किया इस के कारण वे भी संपत्ति में समान रूप से हिस्सेदार हैं।

दादी के देहान्त के उपरान्त उन की संपत्ति भी समान रूप से शेष आठों को प्राप्त हो गई इस तरह आप के पिता, चाचा और बुआओं में से प्रत्येक का उस संपत्ति में 1/8 हिस्सा है। आप की बुआओं को संपत्ति के बँटवारे का वाद संस्थित करने और अपना हिस्सा प्राप्त करने का पूरा अधिकार है।

टवारी ने केवल आप के पिता और चाचा का नाम पहले राजस्व रिकार्ड में गलत लिखा था बाद में उस ने बुआओँ के नाम अंकित कर के अपनी गलती सुधार ली। यदि उस ने नोटिस नहीं दिया तो आप के पिता और चाचा को जब पता लगा तब उन्हें उस सुधार की अपील करनी चाहिए थी जिस का उन्हें अधिकार था, लेकिन वे अपील इस लिए नहीं कर सकते थे कि अपील में भी यही होता कि बुआओँ का हिस्सा दर्ज किया जाता।

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