स्त्री का पति से तलाक न होने पर वह संतानों के समान ही पति की संपत्ति की उत्तराधिकारी है।
समस्या-
विकास शर्मा ने मुजफ्र्फरनगर उत्तर प्रदेश से पूछा है-
मेरे माता और पिता की कभी बन नही पाई। पिता के साथ मनमुटाव होने पर माताजी सन 2000 में अपने घर चली गयी और उन्होने पापा के उपर खर्च के लिये मुकदमा फैमिली कोर्ट में डाल दिया। 2002 में उनके 1000 रूपये महीना कोर्ट द्धारा तय कर दिये गये। उसके बाद उन्होने पैसे और बढाने के लिये फिर से केस किया। इस बीच पिता जी अदालत द्धारा तय रकम दे रहे थे। माता जी ने अदालत में बयान भी दिया था कि वे अपने घर पर रह रही हैं पांच साल से। सन 2007 में पिता जी की हत्या हो गयी। उसके बाद माता जी हमारे घर आयी। मैं अपनी पत्नी व बच्चों के साथ अपने पिता के साथ रहता था। अपने पिता को खोने के बाद मैं ने ये मानकर कि अब पिता जी के न रहने से विवाद नहीं रहा, मैं ने उनको आने दिया। कुछ दिनों बाद वे घर में कब्जा जमाने लगीं। उन्हों ने पेंशन अपने नाम करायी और फंड का पैसा भी ले लिया। मुझे इससे कोई दिक्कत नही थी। मुझे पिता की नौकरी मिली जिस पर माता जी व बहन ने अनापत्ति शपथपत्र दिया। यहां तक ठीक था पर एक मकान जो कि पैतृक है और जिसका बैनामा नहीं है बस 50 से अधिक सालों से हमारे पास है और हाउस टैक्स पिताजी के नाम से आता है। माता जी ने इस हाउस टैक्स को अपने नाम कराने के लिये नगर पंचायत में प्रार्थना पत्र दिया। मेरे विरोध के बाद नगर पंचायत ने हाउस टैक्स में माताजी और मेरे संयुक्त नाम से मकान का हाउस टैक्स कर दिया। अब माताजी इस मकान में दीवार करना चाहती हैं और मुझे और मेरे परिवार को परेशान कर रखा है। मै ये जानना चाहता हूं कि यदि मेरे पिता और माता के बीच मुकदमा था खर्च को लेकर लेकिन तलाक नही हुआ था। इस बीच पिता के गुजरने के बाद क्या पिता की सम्पत्ति पर माता का हक होता है? नगर पंचायत का नामांतरण करवाना कानूनी हक नहीं होता है ये मै जानता हूं। पर क्या मैं किसी भी आधार पर ये नामांतरण कोर्ट से रदद करवा सकता हूं? क्या मैं पिता के मुकदमे को आगे बढा सकता हूं? जब पिता जी और माता जी 10 से अधिक वर्षो से एक साथ नहीं रहते थे तो क्या उनके बीच तलाक की स्थिति नहीं मानी जायेगी? मैं बहुत परेशान हूं। या तो वे मकान को इसी स्थिति में बेच देंगी किसी झगडालू आदमी को या फिर मुझे रोज परेशान करेंगी। क्या मै इस स्थिति में कुछ कर सकता हूं?
समाधान-
आप की माता जी का पिता के साथ विवाद था। वे मायके में या अलग रहती थीं और पिता से न्यायालय के आदेश से खर्चा प्राप्त करती थीं। लेकिन उन का तलाक नहीं हुआ था। इस तरह वे
आप के पिता की मृत्यु पर्यन्त पत्नी रहीं। इस कारण से वे आप के पिता की उसी तरह उत्तराधिकारी हैं जैसे आप उन के उत्तराधिकारी हैं। आप के एक बहिन भी है इस आप के पिता की निर्वसीयती संपत्ति के आप स्वयं, आप की बहिन और आप की माता जी तीन उत्तराधिकारी हैं।
जहाँ तक पेंशन और अन्य बकाया सेवा लाभों का प्रश्न है तो। पेंशन की अधिकारी सिर्फ आप की माताजी थीं। लेकिन ग्रेच्युटी और अन्य लाभ जो भी उन्हें मिले हैं उन की वे ट्रस्टी मात्र हैं उन पर आप का और आप की बहिन का भी उतना ही अधिकार है जितना की आप की माता जी का। अर्थात जो भी राशि उन्हें पेंशन के अतिरिक्त प्राप्त हुई है उस का एक तिहाई आप को और एक तिहाई आप की बहिन को प्राप्त करने का अधिकार है। यदि वह राशि आप की माता जी ने रख ली है तो आप और आप की बहिन अपना अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए माता जी के विरुद्ध दीवानी वाद दीवानी न्यायालय में दाखिल कर सकते हैं।
मकान को आप ने पुश्तैनी बताया है। उस की स्थिति जटिल हो सकती है। आप के पिता जी के अलावा परिवार के अन्य हकदार भी उस के हो सकते हैं। लेकिन यदि केवल आप के पिता ही उक्त मकान के एक मात्र वारिस थे और वह संपत्ति पुश्तैनी है तो उस में आप की माता जी को जीवनकाल में ही उपभोग मात्र का अधिकार मिल सकता है। यदि बँटवारा हो कर उन्हें एक तिहाई हिस्सा भी प्राप्त होगा तो वे उसे विक्रय नहीं कर सकतीं। आप को लगता है कि वे उक्त संपत्ति में अपना हिस्सा बेच सकती हैं तो आप दीवानी न्यायालय में उन के उन का हिस्सा बेचने के मामले में निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए वाद प्रस्तुत कर अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकते हैं। क्यों कि उक्त संपत्ति के स्वामित्व का कोई दस्तावेज नहीं है इस कारण आप को उक्त संपत्ति को आप के परिवार की पुश्तैनी संपत्ति घोषित करने तथा आप की माता जी द्वारा उस मकान या उस का हिस्सा बेचने पर निषेधाज्ञा जारी करने का वाद प्रस्तुत करना होगा।
यदि यह मकान पुश्तैनी संपत्ति न मानी जा कर केवल आप के पिता की संपत्ति मानी जाती है तो फिर उक्त मकान में आप की माता जी, आप की बहिन और आप का एक तिहाई हिस्सा है। आप की माता जी केवल मकान का एक तिहाई हिस्सा प्राप्त कर सकती हैं और उसे बेच सकती हैं। वैसी स्थिति में आप को बँटवारे का वाद प्रस्तुत कर उक्त संपत्ति को अन्य साझीदारों के द्वारा बेचने से रोकने के लिए अस्थाई निषेधाज्ञ्रा जारी करने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त करनी होगी।
कोई भी उपाय करने के पहले अपने क्षेत्र के किसी अच्छे दीवानी मामलों के वरिष्ठ वकील से सलाह अवश्य कर लें। क्यों कि इस तरह के मामलों में बहुत कुछ आप के द्वारा संपत्ति के संबंध में बताए गए तथ्यों और दस्तावेजों के आधार पर संपत्ति की कानूनी स्थिति निर्धारित होगी।