मामला जटिल है, बहुत सावधानी से लड़ना पड़ेगा।
समस्या-
भैरूलाल जाट ने इन्दौर मध्यप्रदेश से पूछा है-
मेरे दादाजी के पास 60 बीघा जमीन उनके पिताजी से प्राप्त हुई 1963 दादाजी के निधन के उपरांत उनके 5 लड़को के नाम से हो गई। इस जमीन में से 3 लड़को ने बिना बंटवारा किये अपनी जमीन बेच दी। जिन तीन लड़को ने जमीन बेची उन तीनो का देहांत हो चूका है। मेरे पिताजी के देहांत के उपरांत मेरी 4 बहनों, मेरा और मेरी माताजी का नाम राजस्व विभाग में मेरे पिताजी के नाम की जगह नामांतरण हो कर हमारे नाम से पासबुक बनाकर पटवारी ने दे दी। हमारी कृषि भूमि एक सहदायिक सम्पति है बाप दादाओ के ज़माने से चली आ रही है। मेरे दादाजी के कोई लड़की नहीं थी एवं दादीजी का देहांत दादाजी से पहले हो चुका है। मेरे पिताजी ने उनके छोटे भाई के 2 लड़को के नाम से 19.05.1977 को अपने हिस्से कि जमीन की रजिस्ट्री करवाई, उस समय दोनों लड़के नाबालिग थे एवं पालनकर्ता के रूप में लड़कों की माँ का नाम लिखा गया। 01.01.2012 को मेरे पिताजी का देहांत हो गया। अब इस 24 बीघा जमीन जो दो भाइयो के पास है एवं कब्ज़ा भी उन्ही का है इसमे 4 भाई एवं मेरी माताजी, मेरी बहनों और मेरा नाम है। मैं ने राजस्व विभाग में बंटवारे का दावा लगा दिया एवं एक पेशी भी हो चुकी है। मेरा सवाल ये है कि क्या मेरी माँ , बहन और मेरे नाम से जो जमीन आ रही है बंटवारे में हमें प्राप्त हो सकती है।
समाधान-
कृषि भूमि की स्वामी तो राज्य सरकार है। किसान उस का केवल खातेदार कृषक है, अर्थात उस की हैसियत किराएदार जैसी है। किसी खातेदार कृषक की मृत्यु, या जमीन के खातेदारी अधिकार को विक्रय कर देने या अन्य किसी प्रकार से हस्तान्तरित कर देने पर जब नामान्तरण होता है तो राज्य सरकार के राजस्व अभिलेख में अंकन मात्र होता है। आप के मामले में आप के पिता जी ने जो उन के हिस्से की रजिस्ट्री भाई के दो बेटों के नाम कराई है वह किस किस्म की है यह आप ने नहीं बताई है, वह दान या विक्रय या कुछ और हो सकती है। आप के प्रकरण का निर्णय बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि उस रजिस्टर्ड डीड में क्या लिखा है।
आप के प्रश्न से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि आप के पिता ने जो रजिस्ट्री कराई उस के आधार पर कोई नामान्तरण राजस्व विभाग में नहीं हुआ। इसी कारण आप के पिता की मृत्यु के उपरान्त आप के नाम नामान्तरण खुल गया।
यदि आप की संपत्ति सहदायिक थी तो आप के दादा जी के बाद उस के बराबर के हिस्से पाँचों पुत्रों को मिल गई तथा उन के नामान्तरण भी हो गए। सहदायिक होने के कारण पिता जी के हिस्से में उन के पुत्रों के हिस्से भी शामिल थे। अर्थात आप का व आप के भाइयों का भी उस में हिस्सा था। आप की बहनो का हिस्सा वर्ष 1977 तक नहीं था। बहनों का हिस्सा सहदायिक संपत्ति में हिन्दू विवाह अधिनियम में 2005 के संशोधन से पैदा हुआ और तब आप भाइयों के हिस्से कम हो गए।
1977 में यदि आप के पिता ने रजिस्टर्ड डीड से उन के हिस्से का कोई हस्तान्तरण किया है तो वह केवल उन के हिस्से का हुआ है। मसलन आप चार भाई हैं तो उस समय उन का हिस्सा मात्र 1/5 था केवल वही वे हस्तान्तरित कर सकते थे। इस कारण उस रजिस्ट्री का कोई असर हुआ तो यही होगा कि उस वक्त जो हिस्सा आप के पिता का कहा जा रहा था उस का 4/5 हिस्सा तो उस से हस्तान्तिरत भी नहीं हुआ था।
आप के मामले में आप को यह साबित करना होगा कि जिस कृषि भूमि का विवाद है वह सहदायिक है। इस के अतिरिक्त अन्य जटिल प्रश्न और भी हो सकते हैं, मसलन यह कि यदि आप के पिता अपना हिस्सा हस्तान्तरित कर चुके थे तो फिर उन के देहान्त के बाद आप की माता का हिस्सा कहाँ से उत्पन्न हुआ। उन के नाम हुआ नामान्तरण भी त्रुटिपूर्ण है। इस कारण आप को तथा आप के वकील को यह मुकदमा बहुत सावधानी से बिना कोई गलती किए लड़ना पड़ेगा तभी आप को सफलता प्राप्त हो कर अपना हिस्सा प्राप्त हो सकेगा।