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दत्तक ग्रहण का पंजीकरण अनिवार्य नहीं, परम्परा के साक्ष्य से साबित किया जा सकता है

समस्या-

छोटूलाल ने ग्राम बिलिया, तहसील शाहपुरा, जिला भीलवाड़ा से पूछा है-

मेरे बड़े पिताजी के एक लड़की है और कोई बेटा नही है। जिसके कारण बड़े पिताजी ने मेरे को गोद लिया। लेकिन गोद में तहसील से गोदनामा नहीं बनवाया गया था. बड़े पिताजी का देहांत 1990 में हुआ उनके नाम एक हेक्टर ज़मीन थी। फिर वह ज़मीन बड़ी मम्मी के नाम नामान्तरण हो गया। बड़ी मम्मी की लड़की का देहान्त 2010 में हो गया। इन के  दो वारिस हैं। बड़ी मम्मी का देहान्त 2013 में हो गया। अब वर्तमान में ज़मीन बड़ी मम्मी के नाम है। अब उसका नमान्तरण कैसे होगा और किन के नाम होगा?.

समाधान-

गोदनामे का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। लेकिन अनुकम्पा नियुक्ति जैसे कुछ मामलों में नियमों द्वारा अपंजीकृत गोदनामों को अस्वीकार किया गया है। गोद या दत्तक ग्रहण के लिए जरूरी है कि वह परम्परा के अनुसार उसका समारोह हुआ हो और परिवार व समाज के लोगों के सामने उसकी घोषणा हुई हो। बस यही है कि यदि दत्तक ग्रहण को चुनौती मिले तो ये सब चीजें साबित करनी पड़ती हैं।

हम आपको बड़े पापा का दत्तक पुत्र मान कर चलते हैं। उनके एक लड़की है। दत्तक ग्रहण होने से दो सन्तानें हो गयीं और उनके उत्तराधिकारी तीन। उनके देहान्त के उपरान्त नामन्तरण होना था तीनों उत्तराधिकारियों के नाम। लेकिन हुआ केवल पत्नी के नाम। इसका अर्थ यह हुआ कि पुत्री और दत्तक पुत्र की अनापत्ति और अपना हिस्सा छोड़ देने के कारण ऐसा हुआ। यह स्वाभाविक भी था क्यों कि माँ के देहान्त के बाद तो फिर से उन दोनों को ही वह सम्पत्ति उत्तराधिकार में मिलने वाली थी, यदि माँ ने वसीयत नहीं कर दी होती।

आपके मामले में पुत्री का देहान्त हो गया। उसके बाद माँ का देहान्त हुआ। अब सम्पत्ति का उत्तराधिकार स्त्री की संपत्ति के उत्तराधिकार के उपबन्ध हिन्दू उत्तराधिकार की धारा-15 से निर्धारित होगा। पहले विकल्प में पुत्र तथा पुत्री या मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र-पुत्रियों को उसकी सम्पत्ति प्राप्त होगी। इस तरह यदि आप अपने आपको दत्तक पुत्र प्रमाणित करते हैं तो एक एकड़ जमीन का आधा हिस्सा आपको तथा आधा हिस्सा आपकी बहिन के पुत्र पुत्रियों को उत्तराधिकार में प्राप्त होगा। इसी प्रकार नामान्तरण होना चाहिए।

यह हो सकता है कि तहसीलदार आपको गोद पुत्र नहीं मानता है तो आप अपनी बहिन के उत्तराधिकारियों और राज्य सरकार द्वारा तहसीलदार को पक्षकार बनाते हुए गोदपुत्र घोषित करने के लिए दीवानी वाद संस्थित कर सकते हैं और दीवानी न्यायालय से इस आशय की अस्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करें कि वाद के निर्णय तक नामान्तरण नहीं किया जाए।